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संवरद्वार-दिग्दर्शन
अहिंसा को वरदान समझ कर उसका स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं। अतः अहिंसा का दायरा बहुत ही विस्तृत है, इस कारण अहिंसा को संवरों में सर्वप्रथम स्थान दिया गया।
___ एक बात यह भी है कि मनुष्य जब झूठ बोलता है, तब वह अपने शुद्ध आत्मस्वरूप की भावहिंसा कर लेता है ; चोरी करता है,तब भी भावहिंसा हो जाती है,मैथुनसेवन से भी और ममत्व से भी भावहिंसा का सम्बन्ध है ; शोषण, लूट, गबन आदि भी हिंसा के ही प्रकार हैं । अतः अहिंसा के ग्रहण करने से सत्यादि चारों का उसी में समावेश हो सकता है । इस दृष्टिकोण से भी अहिंसा को सर्वोपरि स्थान दिया गया है । भगवती अहिंसा शेष समस्त संवरों की तथा व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान, संयम और तप की जननी है। इसके होने पर ही इन सबका अस्तित्व रह सकता है। यह न हो तो व्रत, नियम, संयम, त्याग, प्रत्याख्यान और तप आदि का कोई भी महत्व या अस्तित्व नहीं रह जाता। इसलिए शेष चारों संवर अहिंसा के ही विस्ताररूप हैं।
इसीलिए शास्त्रकार अहिंसा भगवती के गुणगान करने के लिए प्रेरित हो कर कहते हैं—'तीसे सभावणाओ किंचि वोच्छं गुण (सं ।'
१ 'अहिंसाग्गहणे पंचमहव्वयाणि गहियाणि भवंति'
–दशवकालिक चूर्णि
-सम्पादक