________________
६२०
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
स्थूल दृष्टि वाले लोग सत्य को उसकी अभिव्यक्ति से ही पकड़ पाते हैं ; भावों और चेष्टाओं (लेखन, इशारा, आकृति, स्वर आदि) से सत्य को पकड़ना हर एक मनुष्य
वश की बात नहीं । मनुष्य के बाह्यव्यवहार से भी सत्य को पकड़ना आसान नहीं होता । इसलिए सत्य की अधिकांश अभिव्यक्ति वचन के द्वारा होने से सत्यभाषण पर ही शास्त्रकारों या आचार्यों ने जोर दिया है । किन्तु यह कथन बहुलता की अपेक्षा समझना चाहिए | सत्यवचन से उपलक्षणतया सर्वत्र सत्य - आचरण ही समझना चाहिए । सत्य की इतनी महिमा क्यों ? - प्रश्न यह होता है कि अगर सत्य न बोला जाय तो क्या हो जायगा ? इसका इतना माहात्म्यवर्णन शास्त्रकार क्यों करते हैं ? इसका समाधान यह है कि सारा संसार सत्य के आधार पर ऋतु, ग्रह, नक्षत्र, तारे, समुद्र हवा आदि सब सत्य के सूर्य चन्द्र अपने नियमानुसार समय पर उदित होते हैं, ऋतुएँ अपने-अपने समय पर आती हैं, हवा बहती रहती है, समुद्र अपनी मर्यादा में रहता है, आकाश सबको अवकाश देता है, अग्नि जलाती है । ये सब पदार्थ अगर अपना-अपना कार्य न करते तो संसार में प्रलय हो जाता। इसी प्रकार जितने भी व्यवहार हैं, वे सब सत्य के आधार पर चलते हैं। अगर दुनिया में सत्य का व्यवहार न हो तो सर्वत्र त्राहित्राहि मच जाय । जहाँ सत्य के व्यवहार में गड़बड़ होती है, वहीं अशान्ति, अव्यवस्था या विषमता फैलती है । सत्य के आधार पर सभी काम संतुलित रूप से होते जाते हैं । इसलिए शास्त्रकार क्या दुनिया के तमाम बुद्धिमान मनुष्य, सत्य को मानवजीवन के लिए ही नहीं, प्राणि मात्र के जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं । कहा भी है'सत्येन धार्यते पृथ्वी, सत्येन तपते रविः । सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥'
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं
ठहरी हुई है, सत्य के कारण ही संसार में सभी कुछ सत्य पर ही
अर्थात् - सत्य के आधार पर ही पृथ्वी सूर्य तपता है, सत्य के कारण ही हवा चलती है। टिका हुआ है ।
इसी बात की साक्षी शास्त्रकार निम्नोक्त
चलता है । सूर्य, चन्द्र,
आधार पर चलते हैं ।
शब्दों से देते हैं
'जे वि य लोग मि अपरिसेसा मंतजोगा सव्वाणि वि ताई सच्चे पइट्टियाइ" इस पंक्ति का अर्थ मूलार्थ में हम स्पष्ट कर चुके हैं ।
सारा संसार या संसार के सभी शुभभाव या पदार्थ आदि जिसके आधार पर टिके हों, भला उस सत्य की महिमा का वर्णन कौन नहीं करेगा
सत्य क्या है ? -- सत्य को 'शुद्ध' कहा गया है । जिसका अर्थ है- अविकारी | जिसमें मिलावट, बनावट, दिखावट या सजावट होगी ; वह विकारी होगा । सत्य में मिलावट, बनावट, दिखावट, या सजावट नहीं होती और न उसमें इसकी जरूरत ही