________________
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र वयणस्स वेरमण-परिरक्खणट्ठयाए) मिथ्यावचन से विरति को पूर्ण सुरक्षा के लिए हैं, इन पर चिन्तन करना चाहिए । (१) (पढम) प्रथम भावना अनुचिन्त्यसमितिरूप है, जिसे संवरट्ठ) सद्गुरु से मृषावादविरमण -सत्यवचन प्रवृत्तिरूप संवर के प्रयोजन को (सोऊण) सुन कर, उसके (परमठ्ठ) उत्कृष्ट परम अर्थ को (सुठ्ठ) भलीभांति (सुद्ध) निर्दोषरूप से (जाणिऊण) जानकर, (न वेगिय वत्तव्वं) वेग-विकल की तरह संशययुक्त या हड़बड़ा कर न बोले, (न तुरिय) जल्दी-जल्दी उतावली में सोचे विचारे बिना न बोले, (न कडुय) कड़वा वचन न बोले, (न चवलं) क्षणभर पहले कुछ और एक क्षण बाद कुछ और, इस प्रकार सनक में आ कर चचलता से न बोले, (न फरुसं) कठोर वचन न बोले, (न साहसं) बिना बिचारे सहसा न बोले (य) और (न परस्स पीलाकरं सावज्ज) दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाला, पाप से युक्त वचन न बोले । किन्तु (सच्चं) सत्य (च) और (हिगं) हितकर (मियं च) तथा परिमितथोड़ा (गाहगं) विवक्षित अर्थ का ग्राहक-प्रतीति कराने वाला, (सुद्ध) वचन के दोषों से रहित, (संगयं) युक्तिसंगत–पूर्वापर अबाधित (च) और (अकाहलं) स्पष्ट (च) तथा (समिक्खितं) पहले बुद्धि से सम्यक् प्रकार से पर्यालोचित-सोचाविचारा हुआ वचन, (कालंमि) अवसर आने पर, (संजतेण) संयमी पुरुष को (वत्तव्वं) बोलना चाहिए । (एवं) इस प्रकार (अणुवीइसमितिजोगेण) पूर्वापर सोच कर बोलने की समिति-सम्यक् प्रवृत्ति के योग से (भावितो) संस्कारयुक्त हुआ (अंतरप्पा). अन्तरात्मा-जीव, (संजयकरचरणनयणवयणो) हाथ, पैर, नेत्र और मुख पर संयम करने वाला हो कर (सूरो) पराक्रमी तथा (सच्चज्जवसंपन्नो) सत्य और आर्जव ... सरलता से सम्पन्न-परिपूर्ण(भवति) हो जाता है । (२) (वितिय) द्वितीया भादनाक्रोधनिग्रह-शान्तिरूप है । वह इस प्रकार है (कोहो ण सेवियम्वो) क्रोध का सेवन नहीं करना चाहिए। (कुद्धो मणूसो) क्रोधी मनुष्य (चंडिक्किओ) रौद्ररूप हो कर या रौद्रपरिणाम से युक्त होकर (अलियं) मिथ्या, (भणेज्ज) बोलता है, (पिसुणंभणेज्ज) चुगली के वचन बोलता है, (फरसं) कठोर वचन बोलता है, तथा (अलियं पिसुणं फरुसं भणेज्ज) झूठ,चुगली के वचन व कठोरवचन (तीनों एक साथ) बोलता है, (कलह करेज्जा लड़ाई कर बैठता है, (वेरं करेज्जा) वैरविरोध कर लेता है. (विकह करेज्जा) विकथा- अटसंट-- वकवास करता है, (कलहं वेरं विकह करेज्जा) तथा कलह,वैर और विकथा तीनों एक साथ कर बैठता है, (सच्चं हणेज्ज) सत्य का गला घोट देता है, (सीलं हणेज्ज) शील सदाचार का नाश कर देता है, (विणयं हणेज्ज) विनय-नम्रता का सत्यानाश कर देता है, (सच्चसीलविणयं हणेज्ज) सत्य, शील