Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 709
________________ ६६४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र अचियत्तघरपवेसो, अचियत्तभत्तपाणं, अचियत्त - पीढ़ - फलगसेज्जा- संथारग- वत्थ- पत्त - कंबल- दंडग - रयहरण- निसेज्ज - चोलपट्टग - मुहपोत्तिय-पायपुंछणाइभायणभंडोवहि - उवकरणं, परपरिवाओ, परस्स दोसो परववएसेणं जं च गेण्हइ, परस्स नासेइ जं च सुकयं, दाणस्स य अंतराइ(ति)यं दाणविप्पणासो, पेसुन्नं चेव मच्छरित्तं च, जेवि य पीढ-फलग-सेज़्जासंथारग- वत्थ- पाय-कंबल- मुहपोत्तिय-पायपुछणादि(इ)-भायणभंडोवहिउवकरणं असंविभागी असंगहरुई (ती) तवतेणे य वइतेणे य रूवतेणे य आयारे चेव भावतेणे य, सद्दकरे, झंझकरे, कलहकरे, वेरकरे,विकहकरे,असमाहिकरे सया अप्पमाणभोई (ती) सततं अणुबद्धवेरे य निच्चरोसी से तारिसए नाराहए वयमिणं । अह केरिसए पुणाई आराहए वयमिणं ? जे से उवहिंभत्तपाणसंगहणदाणकुसले, अच्चंतबालदुब्बल गिलाणवुड्ढखमके, (खवग)-पवत्ति-आयरिय-उवज्झाए, सेहे, साहम्मिके, तवस्सीकुलगणसंघचेइय? निज्जरट्ठी वेयावच्चं अणिस्सियं बहुविहं । दसविहं करेति, न य अचियत्तस्स गिहं पविसइ, न य अचियत्तस्स गेण्हइ भत्तपाणं, न य अचियत्तस्स सेवइ पीढफलगसेज्जासंथारगवत्थपायकंबलडंडगरयहरण- निस्सेज्जचोलपट्टयमुहपोत्तियपायपुछणाइ-भायणभंडोवहि-उवगरणं, न य परिवायं परस्स जंपति, ण यावि दोसे परस्स गेण्हति, परववएसेण वि न किं चि गेण्हति, न य विपरिणामेति किंचि जणं न यावि णासेति, दिन्नसुकयं दाऊण य न होइ पच्छाताविए संविभागसीले संगहोवग्गहकुसले से तारिसए(ते) आराहेति वयमिणं । संस्कृतच्छाया जम्बू ! दत्तानुज्ञातसंवरो नाम भवति तृतीयं सुव्रत ! महावतं, गुणवतं, परद्रव्यहरणप्रतिविरतिकरणयुक्त, अपरिमितानन्ततृष्णानुगत

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