________________
६३४
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
___ आख्यातपद-आत्मने पद, परस्मैपद, और उभयपदरूप तथा भूत-भविष्यवर्तमानकालात्मक आदि अर्थविशेष को प्रगट करने के लिए जो साध्य क्रियापद होता है, उसे आख्यातपद कहते हैं । जैसे भवति, भविष्यति, अभवत् इत्यादि क्रियापद ।
निपातपद - अमुक-अमुक अर्थों को व्यक्त करने के लिए जो सिद्ध पद स्वीकार कर लिए जाते हैं, जिनके साथ विभक्ति-प्रत्यय नहीं लगते, जिनके रूप नहीं बनते; ऐसे अव्यय निपातपद कहलाते हैं। जैसे च, वा, ह, अह, खलु आदि ।
उपसर्गपद-धातुओं के समीप (पहले) जिन्हें जोड़ा जाता है. तथा जिनके लगाने से धातु का अर्थ बलात् बदल जाता है, उसे उपसर्ग कहते हैं । ऐसे प्र, परा अप, सम आदि उपसर्ग होते हैं।
तद्धितपद-उन-उन अर्थों के हित-प्रयोजन के लिए सुबन्तपद के आगे प्रत्यय लग कर जिनका निर्माण होता है वे तद्धितपद कहलाते हैं । जैसे नाभि महाराजा के पुत्र, इस अर्थ में नाभि शब्द के आगे 'एय' प्रत्यय लग कर 'नाभेय' (ऋषभदेव) शब्द बना है।
समासपद-अनेक पद मिल कर जो एक पद बन जाता है उसे समास कहते हैं । समासपद तत्पुरुष, कर्मधारय, द्वन्द्व, द्विगु, बहुब्रीहि इत्यादि रूप होता है । जैसे -.. राजा का पुरुष = राजपुरुष, यह तत्पुरुषसमासान्त पद हुआ।
___ सन्धिपद-वर्णों की अत्यन्त निकटता होना सन्धि है; जैसे दधि+ इदं यहाँ दोनों 'इ' कारों के स्थान में एक दीर्घ 'ई' कार हो कर दधीदम् शब्द बनता है।
हेतु-जो साध्य के साथ अविनाभाव से रहता हो उसे हेतु कहते हैं। जैसे - किसी ने कहा-"पर्वत अग्नि वाला है, धूआ होने से ।' यहाँ साध्यरूप अग्नि की अनुमिति में अविनाभावसम्बन्ध होने से धुआ हेतु है।
यौगिक पद-दो या तीन आदि पदों से योग से जो बनता है, उसे यौगिक पद कहते हैं । जैसे उप+ करोति, इन दोनों पदों से उपकरोति यौगिक शब्द बन जाता हैं।
उणादिपद उण आदि प्रत्यय जिसके अन्त में होते हैं, उसे उणादिपद कहते हैं । जैसे आशु, स्वादु आदि शब्द ।
क्रियाविधान-कृत्प्रत्यय जिसके अन्त में हों, वे कृदन्त क्रिया विधान कहलाते हैं । जैसे—कुम्भं करोति इति कुम्भकारः, पचति इति पाकः, करोति इति कारक: आदि।
धातु-क्रियावाचक शब्द धातु कहलाते हैं । जैसे भू, अस्, कृ इत्यादि ।
स्वर-अ आ इ ई आदि स्वर कहलाते हैं । अथवा षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम,धैवत और निषाद, ये संगीत के स्वर भी स्वर कहलाते हैं । अथवा उच्चारणकालसूचक ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत भी स्वर कहलाते हैं। कहीं पर 'रस' पाठ