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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर
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साधु (समियं) सम्यक् प्रकार से अथवा यतनापूर्वक (भुजेज्जा ) भोजन करे । ( एवं) उक्त प्रकार से (आहारसमितिजोगेणं) आहार में सम्यक्प्रवृत्ति के योग से (भावितो) भावित - भावनायुक्त, (अंतरप्पा ) अन्तरात्मा (असबलम संकिलिट्ठनिव्वणचरित्तभावणाए) शबलदोषरहित, असंक्लिष्ट परिणामी, अखंडचारित्र की भावना से युक्त (संजए) संयम में प्रयत्नशील (सुसाहू) सुसाधु ही (अहिंसए) अहिंसक (भवति) होता है । (पंचम) पांचवीं भावना (आदाणनिक्खेवणसमिई) वस्तु के उठाने और रखने में सम्यक प्रवृत्तिरूप आदाननिक्षेपणसमिति है । उसमें ( पीढफलग सिज्जासंथारगवत्थपत्तकं बलदंडगरयहरणचोलपट्टगमुहपोत्तिगपायपु छणादी) पीठ - चौकी, फलकपट्टा, शय्या - शयन करने का आसन, संस्तारक — घास या दर्भ का विछौना, वस्त्र, पात्र, कंबल, दंड, रजोहरण, चोलपट्टा, मुखवस्त्रिका, पैर पोंछने का कपड़ा आदि (ब) अथवा ( एवं ) ये तथा (अपि) और भी ( उवगरणं) उपकरण (संजमस्स उववूहणट्ठयाए) संयम की वृद्धि - पुष्टि के लिए (वातातवदंस म सगसीय परिरक्खणट्ट्याए ) हवा, धूप, डांस, मच्छर और ठंड आदि से शरीर की भलीभांति रक्षा के लिए (परिहरितव्वं ) रखने चाहिए। (संजएण) संयमी साधु को (निच्च) सदा ( पडिलेहणपप्फोडण - पमज्जणाए ) इन उपकरणों के प्रतिलेखन, प्रस्फोटन -- यत्नपूर्वक झटकने, तथा प्रमार्जन करने में ( अहो य राओ य) दिन और रात में (सययं अप्पमत्तेण ) सतत प्रमाद रहित (होई) होकर ( भायणभंडोवहिउवगरणं) भाजन - काष्ठ पात्र आदि, मिट्टी के पात्र आदि तथा वस्त्र आदि उपकरण (निक्खियव्वं ) नीचे रखने चाहिए (च) और (गिहियव्वं ) ग्रहण करने या उठाने चाहिए। ( एवं ) उक्त प्रकार से ( आयाणभंडनिवखेवणासमितिजोगेण ) आदानमांडनिक्षेपणसमिति के योग से (भाविओ) भावित - भावनाओं से युक्त (अंतरप्पा ) अन्तरात्मा, (असबलमसंकि लिट्ठ निव्वणचरित्तभावणाए) शबलदोषरहित, शुद्ध परिणामी, अखंड चारित्र की भावनाओं से युक्त (संजए) संयत ( सुसाहू) सुसाधु ही (अहिंस) अहिंसक (भवति) होता है ।
( एवं ) इस प्रकार ( इणं) यह ( संवरस्स दारं ) अहिंसारूप संवर का द्वारउपाय है, (मणवयणकायपरिरक्खि हि ) मन, वचन और काया के द्वारा सब तरह से रक्षित, (इमेहि पंचहि वि कारणेहिं) भावनारूप इन पांचों कारणों से ( णिच्छं) सदा ( आमरण तं ) मरणपर्यन्त ( सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहियं ) जो सम्यक्रूप से आसेवित- आचरित होने पर मन में जम जाता है, (य) तथा ( धितिमता ) धैर्यवान् यानी स्वस्थचित्त वाले, ( मतिमता ) बुद्धिमान साधु को ( अणासवो ) नये कर्मों के