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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र का रक्षक और माता-पिता होने के नाते साधु को छोटे-बड़े सभी प्राणियों के प्रति दयापरायण हो कर रहना चाहिए ।
(२)मनःसमिति भावना-मन में जो भी विचार या भाव उठे, उसे पहले जाँचे-परखे कि यह धर्मयुक्त है या अधर्मयुक्त ? पापकारी है या पुण्यकारी ? दूसरों को हानि, वध, बंधन, पीडा, मृत्यु, भय क्लेश आदि पहुंचाने वाला तो नहीं है ? यदि कोई भी हानिकर,पापवर्द्धक या अशुभ विचार मन में आने लगे तो तुरंत उसे रोक देना चाहिए। जरा-सा भी खराब विचार कभी मन में न घुसने पाए, और न ही इष्ट-वियोग और अनिष्टसंयोग के समय मन में आर्तध्यान—चिन्ता-शोक ही आना चाहिए । मन को अच्छे विचारों, शुद्धभावों, शुभध्यानों या शुद्ध आत्मचिन्तन की ओर लगाए रखना, यही मन:समितिभावना है।
(३) वचनसमितिभावना-वाणी से कर्कश, कठोर, हिंसाकारक, छेदनभेदनकारक, सावद्य-पापमय प्रवृत्ति में डालने वाला, असत्य, किसी भी प्राणी के लिए वध, बंधन, क्लेश, भय, मृत्यु आदि का जनक, तीखा, कटाक्ष, दिल को चुभने वाला वचन साधु न बोले, वाणी पर संयम रखे । जब भी बोलना हो, तो हित, परिमित, पथ्य, सत्य और मधुर वचन बोले । यही वचनसमितिभावना है।
(४) एषणासमिति भावना–भोजन,वस्त्र, पात्र आदि जीवन की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं हैं। जब तक शरीर रहता है, तब तक उनकी पूर्ति करना जरूरी है, क्योंकि शरीर के टिके बिना धर्मपालन भी कैसे होगा ? स्वाध्याय, ध्यान, सेवा या' स्वपरकल्याण के कार्यों में प्रवृत्ति भी स्वस्थ और सशक्त शरीर के बिना कैसे होगी? अतः साधुजीवन के लिए शास्त्रविहित उद्गम, उत्पादन और एषणा के दोषों से रहित शुद्ध भिक्षाचर्या बताई है। उसके जरिये ही भोजनवस्त्रादि आवश्यक वस्तुए प्राप्त करे । किन्तु भोजन भी गाड़ी की धुरी में तेल डालने या घाव पर मरहम लगाने के समान केवल संयमी जीवनयात्रा को चलाने के लिए ही करे, मौज मजा के लिए नहीं। भोजन करते समय भी संयोजन, अंगार, धूम आदि ग्रासैषणा के दोषों से बचे । भोजनादि का ग्रहण भी केवल संयमयात्रा एवं प्राणधारण करने के हेतु से अत्यन्त शान्तभाव से अदीनतापूर्वक करे । यह एषणासमितिभावना है।
(५) आदाननिक्षेपणसमितिभावना–साधु की अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए कुछ धर्मोपकरणों का शास्त्र में विधान है। किन्तु उन उपकरणों का इस्तेमाल करने के साथ ही यदि उन्हें ठीकतौर से देखे-भाले नहीं तो उनमें अनेक जीव आ कर बसेरा कर लेते हैं। यदि उन्हें बाद में हटाया जाय तो उनमें से कई मर जाते हैं । मरें नहीं,तो भी उन्हें उस जगह को छोड़ने में बड़ी तकलीफ महसूस होती है । इसलिए उन सब उपकरणों का, जिन्हें साधु इस्तेमाल करता है, रोजाना आंखों से प्रतिलेखन