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सातवां अध्ययन : सत्य-संवर
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चक्रवर्ती आदि श्र ेष्ठ मनुष्यों, उत्कृष्ट शक्ति के धारक वासुदेव बलदेव आदि पुरुषों तथा शास्त्र विहित आचरण करने वाले महापुरुषों के द्वारा यह बहुमान्य है, यह उत्कृष्ट साधुओं का धर्माचरण है तथा तप और नियमसे अंगीकार किया जाता है, अर्थात् सत्यवादी के ही सच्चे माने में तप और नियम होते हैं। यह सद्गति का पथ निर्देशक है तथा लोक में उत्तम व्रत माना गया है। यह सत्य विद्याधरों की आकाशगामिनी विद्याओं का साधक है तथा स्वर्गमार्ग और मोक्षमार्ग का प्रवर्तक है, यह मिथ्याभाव से रहित है । यह सरलभावों से युक्त, कुटिलता से रहित है, यह विद्यमान सद्द्भुत अर्थ को ही विषय करता है, विशुद्ध अर्थ वाला है, वस्तुतत्त्व का प्रकाशक है, जीवलोक में समस्त पदार्थों का अविसंवादी-पूर्वापरसंगत रूप से प्रतिपादक है । पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को कहने वाला होने से मधुर है । मनुष्यों की भिन्न भिन्न अनेक कष्टकर अवस्थाओं में वह साक्षात् देवता के समान आश्चर्यजनक कार्य करने वाला है । सत्य के कारण महासागर के बीच दिग्भ्रान्त बने हुए नाविक सैनिकों की नौकाएँ स्थिर रहती हैं, डूबती नहीं हैं । सत्य के प्रभाव से चक्करदार जलप्रवाह में भी मनुष्य बहते नहीं, न मरते हैं, किन्तु वे थाह पा लेते हैं । अर्थात् किनारे लग जाते हैं । सत्य के प्रभाव से चारों ओर आग की लपटों से धिर जाने पर भी जलते नहीं । सरलस्वभावी मनुष्य सत्य के प्रताप से खौलते हुए गर्मागर्म तेल, रांगे, लोहे और सीसे को भी छू लेते हैं, हथेली पर रख लेते हैं, लेकिन जलते नहीं । सत्य को धारण किये हुए मनुष्य पर्वतशिखरों से गिरा दिये जाने पर भी मरते नहीं हैं, और नंगी तलवारों के घेरे में घिरे हुए सत्यवादी मनुष्य समरांगण में से घायल हुए बिना निकल आते हैं, बालबाल बच जाते हैं । सत्यवादी मनुष्य लाठियों की मार, रस्सी आदि के बन्धन, बलात्कार और घोर वैरविरोध से छूट जाते हैं, और शत्रुओं के बीच से वे निर्दोष निकल जाते हैं । देवता भी सत्यवचन में तत्पर मनुष्यों के सान्निध्य में आते हैं अथवा देवता भी सत्य प्रतिज्ञ पुरुषों के दुर्घट कार्यों में सहायक बनते हैं । भगवान् तीर्थंकरों द्वारा भलीभांति वर्णित वह सत्य भगवान् दस प्रकार का है ।
चतुर्दशपूर्वधारकों ने इसे पूर्वगत अंशों - प्राभृतों से विशेषरूप से जाना है, तथा यह महर्षियों के सिद्धान्तों द्वारा प्रदत्त है या प्रज्ञप्त है - वर्णित है, अथवा महर्षियों ने इसे सिद्धान्त रूप में जाना है और इसका आचरण