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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
के बीच भी (पमुच्चति ) छोड़ दिये जाते हैं (य) एवं ( अमित्तमज्झाहि ) दुश्मनों के बीच से ( सच्चवादी) सत्यवादी ( अणहा) निर्दोष - सही सलामत (निइति) निकल जाते हैं (य) और (देवयाओ) देवता ( सच्चवयणे रताणं) सत्य वचन में तत्पर लोगों का (सव्वाणि करेंति) सान्निध्य करते हैं - पास चले आते हैं । ( तं) वह (तित्थंकरसुभासयं) तीर्थंकरों द्वारा भलीभांति प्रतिपादित — कथित ( सच्चं भगवं ) सत्य भगवान् ( दसविहं) दस प्रकार का है। ( घोसपुवीहि) चतुर्दश पूर्वो के ज्ञाताओं ने ( पाहुडत्थविदितं ) प्राभृतों - पूर्वगत भाग विशेषों से जाना है। (य) और (महरिसीण ) महर्षियों के ( समय पनि ) सिद्धान्तों से प्रदत्त या प्रज्ञप्त - दिया या जाना गया है। अथवा (महरिसिसमयपन्नचिन ) महर्षियों ने इसे सिद्धान्तरूप से जाना है और इसका आचरण किया है । ( विदर्नारदभासियत्थं) देवेन्द्रों और नरेन्द्रों ने जिन वचनों के रूप में जीवादि अर्थों - तत्वों को बताया है । ( वेमाणियसाहियं ) वैमानिक देवों के लिए जिनेन्द्रादि द्वारा इसका उपादेय रूप से निरूपण किया गया है अथवा वैमानिक देवों ने इसकी साधना की है या इसे सिद्ध किया है । ( महत्थं ) यह महान् गम्भीर अर्थ वाला है अथवा विशाल प्रयोजन वाला है, (मंतोसहिविज्जासा हणत्थं ) मंत्रों, औषधियों और विद्याओं की साधना करना इन्हें सिद्ध करना ही जिसका प्रयोजन है, (चारणगणसमणसिद्धविज्जं ) जिससे चारणलब्धिधारकों की आकाशचारिणी विद्या तथा श्रमणों की विद्या सिद्ध होती है, (मणुयगणाणं वंदणिज्जं ) यह मानवगणों से वन्दनीय - स्तुत्य है, (च) और ( अमरगणाणं अच्चणिज्जं ) व्यन्तर- ज्योतिष्क देवगणों द्वारा अर्चनीय है, (असुरगणाणं पूर्याणज्जं ) भवनपति आदि असुरगणों द्वारा पूजनीय है, ( अगाडिपरिग्गहितं) अनेक प्रकार के व्रत या वेष धारण करने वाले साधुओं ने इसे अंगीकार किया है । ( जं) ऐसा जो सत्य है, ( तं) वही (लोगंभि सारभूयं) लोक में सारभूत है । यह ( महासमुद्दाओ ) महासमुद्रों से भी ( गंभीरतरं ) बढ़. कर गंभीर है, (मेरुपव्वयाओ ) मेरुपर्वत से भी (थिरतरगं ) अधिक स्थिर - अचल है, (चंदमंडलाओ) चन्द्रमंडल से भी ( सोमतरगं ) बढ़कर सौम्य शान्तिदायक है, (सूरमंडलाओ) सूर्यमण्डल से भी ( दित्ततरं) अधिक दीप्त है— प्रकाशमान तेजस्वी है, ( सरयनहलाओ) शरऋतु के गगनतल से भी (विमलतरं) बढ़कर निर्मल है, (गंधमादणाओ ) गंधमादन पर्वत - गजदन्तपर्वत विशेष से भी (सुरभितरं) अधिक सुगन्धयुक्त है, (च) और, (जे वि) जो भी (लोगंमि) लोक में (अपरिसेसा) समस्त ( मंतजोगा ) मंत्र और वशीकरणादि प्रयोग हैं, (य) तथा (जवा) जप हैं, (य) और (विज्जा ) विद्याएँ हैं, ( जंभका य) तिर्यग्लोकवासी दस प्रकार के जृम्भक देव विशेष हैं, (य) और
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