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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर
मारवाड़ी में चोखा होता है। चोखा का मतलब है-सर्वोत्तम । अहिंसा सर्वोत्तम गुण है । अथवा चोक्ख शब्द पवित्र स्वच्छ का भी द्योतक है। जहाँ वे एक सरीखे अर्थ वाले हैं, वहाँ एक शब्द का उत्कृष्ट अर्थ ग्रहण कर लेना चाहिए । एक दृष्टि से देखा जाय तो अहिंसा उत्कृष्ट पवित्रता है । अहिंसा अपने आप में पवित्र होने से इसे पवित्र कहा गया है । अथवा पवि-वज्र की तरह जो त्राण देता है-रक्षा करता है, उसे पवित्र कहते हैं । अहिंसा को भी इसीलिए पवित्रा कहा गया है। फिर अहिंसा को शुचि भी कहते हैं। शुचि का अर्थ है-भावों की निर्मलता । अथवा शुचि का अर्थ निर्लोभता है । परप्राणों को हरण करने का लोभ अहिंसा से नष्ट हो जाता है। इसलिए इसे 'शुचि' कहा जाता है । शुचि के और भी कई अर्थ होते हैं, जो निम्नोक्त श्लोक से प्रगट हैं
"सत्यं शौचं तपः शौचम् शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदया शौचं जलशौचं तु पंचमम् ॥" अर्थात्- 'सत्य, तप, इन्द्रियनिग्रह, सर्वभूतदया और जलशौच ये पांच • शौच हैं।' . इससे आगे अहिंसा को पूया' कहा है ; जिसका अर्थ होता है-पूता । अहिंसा पूत-पवित्र है, अथवा पूजा रूप भी इसका बनता है ; जिसका अर्थ होता है—प्रशस्त भावपूजा । अहिंसा आत्मा को निर्मल बनाने वाली और आत्मदेव की पूजारूप है, अतः इसका पूया नाम सार्थक है।
'विमल-पभासो'-आत्मा में से क्रोधादिमलों के निकलने पर ही अहिंसा सम्पन्न होती है। क्रोधादिमलों का निकल जाना ही विमलता है । इसलिए अहिंसा को विमल कहना भी न्यायसंगत है। प्रभास का अर्थ प्रकाश है । अहिंसा आत्मा का उत्कृष्ट प्रकाश है । अहिंसा अज्ञान, मिथ्यात्व, हिंसा, राग-द्वेष, कषाय आदि अनिष्टअन्धकारों को निकाल फैकती है। इसी से सम्पूर्ण गुण प्रकाशमान होते हैं। इसीलिए अहिंसा को प्रभास कहा है, वह उचित ही है। __ निम्मलयरत्ति-अहिंसा जीव को कर्मरज के मल से रहित करती है। इसलिए यह निर्मलकर है । अथवा यह निर्मलतर है ।
गुणनिष्पन्न नाम-अहिंसा के उपर्युक्त ६० नाम गुणनिष्पन्न हैं । अहिंसा के निजीगुणों से ये नाम 'निष्पन्न हुए हैं, इसलिए शास्त्रकार कहते हैं- "एवमादीणि निययगुण-निम्मियाइ पज्जवनामाणि होति" इसका अर्थ स्पष्ट है ।
__ अहिंसा ए भगवईए-अहिंसा को भगवती बताया गया है । तीर्थंकर भगवान् की तरह अहिंसा में असंख्य दिव्य गुण पाये जाते हैं, इसलिए तथा भग-ऐश्वर्य से