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प्रथम अध्ययन : अहिंसा-संवर
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पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के एकेन्द्रिय जीवों तक सर्वप्राणिव्यापी बताया है । यही जैनदर्शन की विशेषता है कि इसमें एकेन्द्रिय से ले कर पंचेन्द्रिय तक समस्त प्राणियों को न्याय दिया गया है और उनकी सुरक्षा के लिए अहिंसा का उपदेश है। दूसरे दर्शनों और धर्मों में इतनी सूक्ष्मता से अहिंसा का विचार और प्रयोग नहीं किया गया है । यही कारण है कि अहिंसा को केवल स्थूलजीवों के लिए ही क्षे मंकरी न बता कर सर्वभूतक्षेमंकरी बताया है। अहिंसा के लिए दी गई पूर्वोक्त सभी उपमाएँ प्रायः पञ्चेन्द्रिय स्थूलप्राणियों के लिए प्रतीत होती हैं। इसीलिए यहां कहा गया कि अहिंसा केवल पञ्चेन्द्रिय स्थूलप्राणियों की ही क्षेमकुशल करने वाली नहीं, अपितु इससे भी विशिष्टतर है; पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, तथा बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर. खेचर, त्रस (द्वीन्द्रिय से से लेकर पंचेन्द्रिय तक) और स्थावर (पूर्वोक्त एकेन्द्रिय) आदि समस्त प्राणियों का क्षेम करने वाली है।
यद्यपि वनस्पतिकाय के अन्तर्गत बीज और हरितकाय का समावेश हो जाता है, तथापि इन दो शब्दों को अलग से बताने का शास्त्रकार का यही प्रयोजन मालूम होता है कि कई लोग बीज में जीव नहीं मानते, इसी प्रकार कई लोग हरे पत्तों, घास आदि हरियाली में जीव नहीं मानते, उन्हें इन दोनों की सजीवता का स्पष्ट बोध हो जाय कि इन दोनों में भी जीव हैं। अहिंसापालक को इन दोनों प्रकार के जीवों की अहिंसा का पालन करना आवश्यक है। 'बीज' शब्द से यहां पर केवल गेहूं, चना, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का ही नहीं, अपितु जिनके बोने पर अंकुर उत्पन्न होता है; उन सब (मूल आदि) का ग्रहण किया जाता है। बीज के विषय में निम्नोक्त गाथा प्रस्तुत है
' 'मूलग्गपोरबीजा कंदा, तह खंदबीजबीजरहा।
सम्मुच्छिमा य भणिया, पत्ते याऽणंतकाया य॥ अर्थात्-जिसका मूल (जड़) ही बीज होता है, उसे मूलबीज कहते हैं । जैसे-हल्दी, अदरक आदि । जो वनस्पति अग्रभाग के बोने से ऊगती है, यानी अग्रभांग ही जिसका बीज है, उसे अग्रबीज कहते हैं । जैसे गुलाब, चमेली आदि । जो वनस्पति पर्व (पौर) बोने से ऊगती है, उसे पर्वबीज कहते हैं। जैसे ईख, बेंत आदि । जो वनस्पति कंद से उत्पन्न होती है, उसे कन्दबीज कहते हैं। जैसे—सूरण, रतालू आदि । जो स्कन्ध काट कर लगाने से ऊगती है, उसे स्कन्धबीज कहते हैं। जैसे ढाक आदि । जो अपने-अपने बीज से ऊगती हैं, उसे बीज-बीज कहते हैं । जैसे गेहूं, चना आदि । जो कुछ बोए विना मिट्टी और जल आदि के संयोग से ही ऊग जाती हैं, उन्हें सम्मूच्छिम वनस्पति कहते हैं । जैसे- घास, दूब आदि ।