________________
५३६
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
अतः सूत्रपाठोक्त 'बीज' शब्द से उपर्युक्त गाथा में बताये गये सभी प्रकार के बीजों का ग्रहण किया गया है । फलतः अहिंसा बीज,हरित आदि सभी जीवों का क्षेम करने वाली है।
अहिंसा के आराधक कौन-कौन ? पिछले सूत्रपाठ में शास्त्रकार ने अहिंसा की विशेषता बता दी । अब वे उसकी महत्ता बता रहे हैं कि अहिंसा का आचरण किन-किन विशिष्टपुरुषों ने किया है और किस-किस रूप में किया है ? तथा अहिंसा के शुद्ध आचरण से उन्हें कौन-कौन-सी लब्धियां, और सिद्धियां प्राप्त होती हैं ? तात्पर्य यह है कि शास्त्रकार अब भगवती अहिंसा की विविध रूप में आराधना करने वालों का वर्णन निम्नोक्त सूत्रपाठ द्वारा कर रहे हैं
मूलपाठ . एसा भगवती अहिंसा जा सा अपरिमियनाणदंसणधरेहि सोलगुणविणयतवसंजमनायकेहिं तित्थंकरहिं सव्वजगजीववच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुठ्ठ दिट्ठा, ओहिजिणेहि विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्टा,विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहि अधीता, वेउव्वीहिं पतिन्ना, आभिणिबोहियनाणीहिं सुयनाणीहिं, ओहिनाणीहिं मणपज्जवनाणीहिं, केवलनाणीहिं, आमोसहिपत्तेहिं, खेलोसहिपत्तेहि,विप्पोसहिपत्तेहि, जल्लोसहिपत्तेहिं, सव्वोसहिपत्तेहिं, बीजबुद्धीहिं,कुलुबुद्धीहि, पदाणुसारीहिं, संभिन्नसोतेहिं, सुयधरेहिं, मणबलिएहि,वयबलिएहि,कायबलिएहि,नाणबलिएहि,दसणबलिएहिं, चरित्तबलिएहि,खीरासवेहि,मधुआसवेहि, सप्पियासवेहि, अक्खीणमहाणसिएहिं, चारणेहि, विज्जाहरे हिं, च उत्थभत्तिएहि, एवं जाव छम्मासभत्तिएहिं, उखित्तचरएहि, निखित्तचरएहि,अंतचरएहि, पंतचरएहिं, लूहचरएहिं, अन्नइलाएहिं, समुदाणचरएहि, मोणचरएहि, संसट्ठकप्पिएहि, तज्जायसंसट्ठकप्पिएहि, उवनिहिएहिं, सुद्ध सणिएहिं, संखादत्तिएहि, दिठुलाभिएहि,अदिठुलाभिएहिं, पुट्ठलाभिएहिं, आयंबिलिएहिं, पुरिमड्ढिएहिं, एक्कासणिएहिं,