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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
अर्थात्-१ शंकित, २ प्रक्षित, ३ निक्षिप्त, ४ पिहित, ५ संहृत,६ दायकदुष्ट, ७ उन्मिश्र, ८ अपरिणत, ६ लिप्त और १० छदित (त्यक्त); ये दस एषणा के दोष हैं।'
शंकित दोष वहाँ होता है, जहाँ दाल, चावल आदि अशन, दूध आदि पान, मोदक आदि खादिम और इलायची, सुपारी आदि स्वादिम, इन चारों प्रकार के आहारों में से दाता द्वारा दिये जाने वाले किसी भी भोज्य पदार्थ में शंका हो जाय कि आगमानुसार यह वस्तु ग्रहण करने योग्य है या नहीं ? और ऐसा संदेह हो जाने पर भी उस वस्तु को ग्रहण कर लिया जाय ।
जल आदि सचित्त पदार्थों से प्रक्षित-स्निग्ध हाथ, बर्तन ग कड़छी आदि द्वारा आहारादि ले लेना म्रक्षित दोष है।
सचित्त पृथ्वी, जल, अग्नि, हरितकाय, बीज या द्वीन्द्रियादि त्रस जीवों पर रखा हुआ आहारादि ग्रहण कर लेना निक्षिप्त दोष है।
सचित्त जल या हरे पत्ते आदि वनस्पति से ढका हुआ आहारादि पदार्थ ग्रहण कर लेना पिहित दोष है।
दाता द्वारा बिना देखे-भाले शीघ्रता से बर्तन आदि उघाड़ कर दिया हुआ आहार आदि ले लेना संहृत दोष है ।
दाता यदि अत्यन्त नन्हा बालक हो, अत्यन्त अशक्त या वृद्ध हो, जिसके हाथपैर काँप रहे हों, भोजन करते-करते बीच में ही कच्चे पानी से हाथ धो कर देने को उद्यत हो, आसन्न प्रसवा गर्भवती हो, अन्धा या अन्धी हो, ऊँचे विषम स्थान पर बैठी हो, मुंह से फूक मार कर आग सुलगा रही हो, लकड़ियाँ डाल कर आग जला रही हो, लकड़ी जलाने के लिए चूल्हे में सरका रही हो, राख से आग को ढक रही हो, जल आदि से आग बुझा रही हो, या अन्य कोई अग्नि से सम्बन्धित कार्य कर रही हो, स्नान कर रही हो, या सचित्त वस्तु से सम्बन्धित कोई भी कार्य कर रही हो, तो उस दात्री या ऐसे दाता के द्वारा दिया हुआ आहारादि पदार्थ ले लेना दायकदोष कहलाता है । सचित्त जल, पत्ते, फल, फूल आदि हरितकाय, गेहूं, चने आदि बीज तथा द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव इन पांचों में से किसी भी किस्म के जीवों से मिश्रित आहार दाता से ले लेना उन्मिश्र दोष है।
तिल, चावल आदि के धोवन का जल, उष्णजल, चने, तुष आदि का धोया हुआ जल, हरडे आदि के चूर्ण से मिश्रित जल या और भी किसी चीज का जल, जो अच्छी तरह वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श से परिणत न हुआ हो, उस अप्रासुक जल को ग्रहण करने से अपरिणत दोष लगता है। गेरू, हड़ताल, खड़िया, मैनसिल, बिना छड़े चावल और पत्ते आदि के हरे शाक से लिप्त हाथ या बर्तन या सचित्त जल से भीगे हुए हाथ या बर्तन द्वारा आहारादि देने पर लेने से लिप्त दोष लगता है।