________________
छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर
५३३
लिए (असणं पिव) भोजन के सदृश है । (समुद्दमझे) समुद्र के बीच में, (पोतवहणं व) जहाज की सवारी के समान है । (चउप्पयाणं) चौपाये जानवरों के लिए (आसमपयं) आश्रमपद-आश्रमरूप स्थान के (व) तुल्य है । (दुहट्टियाणं) दुःख से पीड़ितों के लिए (ओसहिबलं) औषधि के बल के (व) समान है। (अडवीमज्झे) जंगल के बीच में, (सत्थगमणं) संघ या सार्थवाह के साथ गमन करने के (वि) समान है। (एत्तो) इन सबसे (विसिट्ठतरिका) अधिक श्रेष्ठ (जा) जो (अहिंसा) अहिंसा है, (सा) वह (पुढवि-जल-अगणिमारुय-वणस्सइ-बीज- हरित-जलयर-थलचर-खहचर-त्रस-स्थावरसव्वभूयखेमकरी) पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर, खेचर, बस-स्थावर सभी प्राणियों का क्षेम-कल्याण करने वाली है।
मूलार्थ-यह वही भगवती अहिंसा है, जो भयातुर जीवों के लिए शरणदाता के समान है ; पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने-उड़ने के समान है ; यह प्यास से व्याकुल प्राणियों के लिए जल के समान है ; भूख से पीड़ितों के लिए भोजन के सदृश है ; समुद्र के बीच में डूबते हुए लोगों के लिए जहाज के समान है ; पशुओं के लिए आश्रयस्थान के समान है ; दुःख
और पीड़ा से आत्त-रोगियों के लिए औषधिबल के समान है । यह भयानक अटवी में सार्थ-संघ के साथ गमन करने के समान है।
. इन सभी से श्रोष्ठ यह अहिंसा है, वह पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बीज, हरितकाय, जलचर, स्थलचर, खेचर (पक्षी),त्रस और स्थावर इन सभी प्राणियों का क्षेम-कुशल-कल्याण करने वाली है।
व्याख्या
इस सूत्रपाठ में भगवती अहिंसा को लोकप्रसिद्ध उपमाएँ दे कर उसकी महिमा का सुन्दर चित्र उपस्थित किया है। वास्तव में अहिंसा जीवन के लिए अमृत है, वह परमब्रह्मरूपा है, सर्वव्यापक है, क्षेममयी, क्षमामयी और मंगलमयी है । अनेकगुणसम्पन्न भगवती अहिंसा कैसे पूज्या है ? इसके लिए शास्त्रकार स्वयं अनेकों उपमाएँ दे कर समझाते हैं।
_ 'भीयाण विवे सरणं'- मनुष्य जब चारों ओर के प्रहारों से भयभीत हो जाता है, तब घबड़ा कर इधर-उधर कोई शरण ढूंढता है । उस समय यदि कोई उसे शरणआश्रय दे दे तो वह हजारों दुआएँ देता है ; उसे वह शरण अमृतदायी लगता है, वैसे ही अहिंसा भी भयभीत और दुःखों से त्रस्त प्राणियों को शरण-आश्रय देती है।