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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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ममत्वदृष्टि नहीं रख सकता। इसलिए अहिंसा विशिष्टदर्शनरूप होने से उसका विशिष्टदृष्टि नाम सार्थक है ।
'कल्ला' – कल्य - आरोग्य की प्राप्ति कराने वाली होने से इसे कल्याण कहा है । जो व्यक्ति जीवन में हर कदम पर अहिंसा का पालन करता है, वह रात्रिभोजन का त्याग करेगा ही ; अभक्ष्य एवं अपेय तामसिक खानपान से वह दूर रहेगा; भोजन का भी परिमाण करेगा; इसलिए स्वतः ही उसका जीवन स्वस्थ रहेगा ही । जिसके जीवन में अहिंसा होती है, उसको चिन्ता, द्वेष, घृणा, असूया, ईर्ष्या, भय, उद्वेग आदि मानसिक रोग प्रायः नहीं होते । इसलिए अहिंसा शारीरिक और मानसिक आरोग्य - कल्याण का कारण होने से कल्याणरूप है ।
'मंगल' - मंगल का अर्थ है - 'मं पापं गालयति भवादपनयतीति मंगलम् अथवा मंग सुखं लातीति मंगलम्' जो पाप का नाश करने वाला है, जन्म-मरणरूप चक्र का निवारण करता है अथवा सुख का देने वाला है वह मंगल हैं। अहिंसा में ये सब गुण हैं । इसलिए इसे मंगल कहा है ।
'पमोओ' - अहिंसा स्वयं प्रमोद का कारण है । अहिंसा का आराधक सदा प्रमोद- हर्ष में मग्न रहता है, तथा उससे अन्य सांसारिक जीव भी अभयदान पाकर प्रमुदित रहते हैं । इसलिए प्रमोद - हर्ष का कारण होने से अहिंसा को प्रमोद भी कहा गया है ।
विभूती - अहिंसा समग्र ऐश्वर्य का कारण है । अहिंसा का पूर्णरूप से पालन करने वाले तीर्थंकर अहिंसा के प्रभाव से विभूतिमान - ऐश्वर्यशाली ( छत्र - चामर आदि बाह्य ऐश्वर्य और केवलज्ञान, अनन्तसुख आदि आभ्यन्तर ऐश्वर्य से सम्पन्न) बनते हैं । इसलिए अहिंसा विभूति का कारण होने से इसे 'विभूति' कहा गया है ।
' रक्खा' - - अहिंसा का विधेयात्मक रूप रक्षा है । साधु और गृहस्थ ही अहिंसा के कहा है।
आराधक हो सकते हैं
।
जीवों की रक्षा करने वाले
अत: अहिंसा को 'रक्षा'
सिद्धावासो – अहिंसा अपने आराधक को सिद्धगति (मोक्ष) में सदा के लिए आवास करा देती है । आत्मा अहिंसा का पालन करके कर्मक्षय करता है और समस्त कर्मों का क्षय होने पर सिद्धों - परमात्माओं के निकट या सिद्धगति में निवास हो जाता है। इसलिए अहिंसा को सिद्धावास कहा गया है ।
अणासवो — कर्मबन्धों को रोकना अनाश्रव है । अहिंसा कर्मबन्धों को रोकती है, जबकि हिंसा कर्मबन्ध का कारण है । अतः कर्मबन्ध के निरोध - अनाश्रव का कारण होने से इसे 'अनाश्रव' कहा गया है ।
केवलीणं ठाणं - केवलज्ञानी सदा अहिंसा भाव में ही स्थित रहते हैं । उनकी