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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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निष्पन्न -- यथार्थ, ( भगवतीए अहिंसाए ) भगवती अहिंसा के, ( पज्जवनामाणि) पर्याय वाचक नाम ( होंति ) हैं ।
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मूलार्थ - उन पांचों संवरों में से प्रथम संवर अहिंसा है । यह पूर्वोक्त अहिंसा देवों, मनुष्यों और असुरों के सहित सम्पूर्ण लोक के लिए आश्रयदाता द्वीप की तरह है, अथवा अज्ञानान्धकार का नाश करने वाला दीपक है । यह सबकी रक्षा करने वाली, शरण देने वाली और कल्याणाभिलाषियों के लिए प्राप्त करने योग्य है । यह सब गुणों और सुखों का प्रतिष्ठान है । यह निर्वाण का कारण है, आत्मिक स्वस्थता का कारण है, समाधि - समता की जननी है, आत्मिक शक्ति का कारण है, अथवा शान्तिरूप है यह कीर्ति का कारण है और आत्मिक व शारीरिक कान्ति बढ़ाने वाली है । यह रति (प्रीति) का कारण है और पापों से विरति कराने वाली है। श्रुतज्ञान ही इसकी उत्पत्ति का कारण है । यह तृप्ति का कारण और जीवदयारूप है, यह बन्धनों से मुक्ति दिलाती है, क्षान्तिरूप है । यह सम्यग् दर्शन की आराधनारूप है अथवा सम्यक् प्रतीतिरूप है | यह सब व्रतों में महान् — प्रधान है । यह केवल प्ररूपित धर्म की प्राप्ति कराने वाली है, और बुद्धि को सफल बनाने वाली है । यह धृति-धैर्यं पैदा करती है. आत्मिक समृद्धि तथा ऋद्धि का कारण है, यह पुण्यवृद्धि का कारण है, पाप को घटा कर पुण्य को पुष्ट करने वाली है, और आनन्ददायिनी है । यह स्वपरकल्याणकारिणी है, पापक्षय करवा कर आत्मा की विशुद्धि करने वाली है, केवलज्ञानादि लब्धियां प्राप्त कराने वाली है, अनेकान्तवाद से विशिष्ट दृष्टिरूप है, कल्याण, मंगल और प्रमोद का कारण है । यह ऐश्वर्यप्राप्ति में निमित्त है, जीवों की रक्षा करने वाली तथा सिद्धों - परमात्माओं के पास निवास कराने वाली - मुक्ति प्राप्त कराने वाली है । यह कर्मबन्ध को रोकने वाली होने से अनाश्रवरूप है, केवलज्ञानियों का स्थान है, और शिव - निरुपद्रवरूप है । यह सम्यक्प्रवृत्ति ( समिति ) - रूप, निराकुलता - समाधान - रूप और संयम रूप है । तथा शील - सदाचार का पीहर - पितृगृह है, संवरमयी है । यह मन वचन - काया की दुष्प्रवृत्तियों को रोकने वाली है, विशिष्ट व्यवसाय - निश्चय का कारण है और भावों की उन्नतिरूप है । यह भाव यज्ञरूप या भावपूजारूप है, गुणों का आयतन - आश्रय है और यतनारूप है या अभयदानरूप है । यह अप्रमादरूप है, प्राणियों के लिए आश्वासनरूप, विश्वास का कारण और अभय पैदा करने वाली या
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