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पंचम अध्ययन : परिग्रह - आश्रव
पदार्थान्वय- - ( ब ) और ( तस्स) उस परिग्रह के, (गोण्णाणि) गुणनिष्पन्न - सार्थक, (इमाणि) ये (तीस) तीस ( णामाणि होंति) नाम होते हैं । (तंजहा) वे इस प्रकार हैं- ( परिग्गहो ) परिग्रह, (संचयो ) संचय (चयो ) चय - - पदार्थों को इकट्ठा करना, ( उवचओ) पदार्थों की वृद्धि करना - उपचय, ( निहाणं) निधान - भूमि आदि में गाड़ कर रखना अथवा धन में निरन्तर बुद्धि जमाए रखना अथवा ( निदाणं) सर्वदोषों का आदिकारण, (संभारो) धान्य आदि वस्तुएँ अधिक परिमाण में भर कर रखना, जमाखोरी करना, (संकरो ) भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं को मिला कर रखना, (आयरो) पदार्थों को आदरपूर्वक सहेज कर रखना, ( पिंडो) द्रव्यों का ढेर करना, ( दव्वसारो) सारभूत द्रव्य या जिसमें द्रव्य ही सार वस्तु मानी जाती है, वह ( तहा महेच्छा ) तथा अपरिमित इच्छा, (पडिबंधा) धन, पदार्थ आदि में आसक्ति रखना, (लोहप्पा) लोभरूप स्वभाव, (महिड्डिया ) धन आदि की महती इच्छा अथवा (महद्दिया) बड़ी भारी याचना, ( उवकरणं) घर का उपयोगी सामान, (संरक्खणा ) अत्यन्त आसक्तिपूर्वक शरीरादि का जतन करना- -रक्षा करना, ( भारो) भाररूप - बोझिल, (संपायउप्पायको ) अनर्थों का उत्पादक, ( कलिकरंडो) कलहों झगड़ों का पिटारा, ( पवित्थरो ) -धन-धाग्य आदि का विस्तार करना; ( अणत्थो ) अनर्थों का कारण, (संथवो) स्त्रीपुत्रादि में अत्यन्त संसर्ग या गाढ़परिचयरूप आसक्ति, (अगुत्ती) इच्छाओं को दबा कर न रखना, अथवा ( अकित्ति ) अपयश का कारण, ( आयासो) शारीरिक और मानसिक खेद, (अविओगो) धनादि का अपने से वियोग न करना, नहीं छोड़ना ; ( अमुत्ती) निर्लोभता का अभाव, ( तव्हा ) धनादिद्रव्यों की तृष्णा — लालसा, ( अणत्थको ) परमार्थदृष्टि से निष्प्रयोजन- निरर्थक, ( आसत्ती) पदार्थों में आसक्ति - मूर्च्छा रखना, (य) और ( असंतोसोत्ति वि य) असंतोष भी ; ( तस्स) उस परिग्रह के (एयाणि) ये ऊपर बताए (तीस) तीस, तथा ( एवमादीणि) इसी प्रकार के और भी ( नामज्जा णि) नाम ( होंति) होते हैं । ( सू० १८ )
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स्लार्थ - परिग्रह के गुणनिष्पन्न -- सार्थक निम्नोक्त तीस नाम हैं । वे इस प्रकार हैं - १ परिग्रह, २ संचय - सर्वथा ग्रहण करने की बुद्धि से धनादि एकत्र करना, ३ चय वर्तमानकाल की अपेक्षा से धनादि का संग्रह करना, ४ उपचय — आगामकाल की दृष्टि से बारबार धनादि की वृद्धि करना, ५ निधान - निरन्तर धन को भूमि में गाड़ कर या तिजोरी में रखना अथवा सब दोषों का निदान, ६ संभार - धान्य आदि पदार्थों को अधिक मात्रा