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पंचम अध्ययन : परिग्रह - आश्रव
परिग्रह में प्रसक्त मनुष्य अपने मन, वाणी, शरीर और इन्द्रियों को उन्मुक्त छोड़ देता है, उन्हें अशुभत्व या असंयम से बचाता नहीं । इसलिए अगुप्ति को परिग्रह की बहन कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं ।
'अगुत्ती' के बदले कहीं-कहीं 'अकित्ति' शब्द मिलता है, उसका अर्थ हैअपकीर्ति बदनामी का कारण । परिग्रह अधिकाधिक बढ़ाने वाले प्रायः अपने धर्म, कर्तव्य या दायित्व की ओर नहीं झांक सकते, न उन्हें समाजसेवा के सत्कार्यों में सहयोग देने की स्फुरणा होती है और न ही परोपकार का चिन्तन होता है । इसलिए केवल जोड़-जोड़ कर धन इकट्ठा करने वालों की कीर्ति कभी नहीं बढ़ती, बल्कि लोग उनकी अपकीर्ति ही अधिक करते हैं, उन्हें बदनाम करने से नहीं चूकते । अतः अकीर्ति में कारणभूत होने से इसे भी शास्त्रकार ने परिग्रह का पर्यायवाची शब्द कहा है ।
'आयासो' — आयास का अर्थ है - खेद । परिग्रह के जुटाने में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का खेद होता है । अत्यधिक शारीरिक श्रम करने पर ही व्यक्ति परिग्रही बनता है । किन्तु इसके साथ मानसिक श्रम भी कम नहीं होता । धन आदि का अर्जन, रक्षण, व्यय और वियोग इन चारों में इसलिए आयास का कारण होने से परिग्रह का आयास नाम भी दिया गया है ।
कष्ट ही कष्ट है ।
'अविओगो' - धन, साधन, घर का सामान आदि किसी भी चीज का त्याग न करना, अपने से वियुक्त न होने देना अवियोग कहलाता है । मनुष्य जब किसी भी चीज में अत्यधिक आसक्त या मोहित हो जाता है, तब वह चीज चाहे सस्ती भी क्यों न हो, उसका अपने से वियोग नहीं होने देता अथवा वह अपनी अपेक्षा किसी अन्य अधिक जरूरतमंद को भी नहीं देता या उसका त्याग नहीं करता । अवियोग एक प्रकार की गाढ़ आसक्ति के कारण होता है; इसलिए इसे भी परिग्रह का एक भाई कह दें तो असंगत नहीं होगा । जिसे आसक्ति का रोग लग जाता है, वह व्यक्ति, किसी भी मनुष्य को — चाहे वह दुःख में ही क्यों न पड़ा हो, जरूरतमंद ही क्यों न हो, दान देने या उसे थोड़ी देर के लिए इस्तेमाल करने हेतु भी अपनी चीज नहीं देता । वह यों सोचा करता है कि अगर मैं अमुक चीज या धन किसी को दान में दे दूंगा तो मेरे पास कम हो जायगा, मैं क्या करूँगा ? इस प्रकार अज्ञानता और मूढ़ता के कारण विपरीत समझ वाला वह किसी भी वस्तु का दान नहीं करता । वह यह नहीं सोचता कि मेरे पास अमुक चीज पड़ी रहेगी, मेरे काम नहीं आएगी तो उससे मुझे क्या सुख मिलेगा ? बल्कि उसकी रक्षा व्यवस्था की चिन्ता करनी पड़ेगी, जिससे दुःख ही
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