________________
४६८
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र और संतोष-वृत्ति धारण करना है। चूंकि असंतोष परिग्रह का कार्य है, इसलिए असंतोष को भी परिग्रह का साथी कहना अनुचित नहीं होगा।
परिग्रहधारी कौन-कौन प्राणी हैं ? नामद्वार के बाद अब शास्त्रकार कर्ताद्वार के माध्यम से परिग्रह को स्वीकार करने वाले प्राणियों का प्रतिपादन करते हैं
मूलपाठ तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवणवर-विमाणवासिणो परिग्गहरुई (ती) परिग्गहे विविहकरणबुद्धो देवनिकाया य, असुर-भुयग-सुवण्ण(गरुल)-विज्जु - जलण-दोव-उदहि-दिसिपवण-थणिय-अणवंनिय-पणवंनिय-इसिवातिय- भूतवाइय - कंदियमहाकंदिय - कुहंड-पतंगदेवा, पिसाय-भूय-जक्ख-रक्खस-किनरकिंपुरिस-महोरग-गंधव्वा य, तिरियवासो, पंचविहा जोइसिया य देवा वहस्सई (तो) चंदसूरसुक्कसणिच्छरा राहुधूमके उबुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जक्रणयवण्णा जे य गहा जोइसम्मि चारं. चरंति केऊ य गतिरतीया अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा नाणासंठाणसंठियाओ य तारगाओ ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साममंडलगती।
उवरिचरा उड्ढलोगवासी दुविहा वेमाणिया य देवा सोहम्मीसाण - सणंकुमार - माहिंद - बंभलोग-लंतक - महासुक्कसहस्सार-आणय-पाणय-अच्चुया कप्पवर-विमाणवासिणो सुरगणा गेवेज्जा अणुत्तरा दुविहा कप्पातीया विमाणवासी महिडिढका उत्तमा सुरवरा एवं च ते चउन्विहा सपरिसा वि देवा ममायंति, भवण-वाहण-जाण-विमाण-सयणासणाणि य नाणाविहवत्थभूसणा पवरपहरणाणि य नाणामणिपंचवण्णदिव्वं च भायणविहिं नाणाविह-कामरूवे वेउव्विय(त)अच्छरगणसंघाते . दीवसमुद्दे दिसाओ विदिसाओ चेतियाणि वणसंडे पन्वते य गामनगराणि य आरामुज्जाणकाणणाणि य, कूव-सर-तलाग-वावि-दीहिय-देव