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संवरद्वार-दिग्दर्शन
प्रथम श्रुतस्कन्ध में शास्त्रकार ने आश्रवद्वार के अन्तर्गत पांच आश्रवों का विशद वर्णन किया है। आश्रव का प्रतिपक्षी संवर है । संवर का महत्त्व जाने बिना आश्रवों से विरति नहीं हो सकती । इसलिए आश्रवों के निरूपण के बाद संवरों का निरूपण आवश्यक समझ कर शास्त्रकार सर्वप्रथम पांच संवरों का दिग्दर्शन निम्नोक्त पाठ द्वारा करा रहे हैं
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मूलपाठ
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जम्बू ! एत्तो य संवरदाराई पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए । जह भणियाणि भगवया सव्वदुहविमोक्खणट्ठा ॥ १ ॥ पढमं होइ अहिंसा, बितियं सच्चवयणं ति पन्नत्तं । दत्तमणुन्नायं संवरो य बंभचेरमपरिग्गहत्तं च ॥ २ ॥ तत्थ पढमं अहिंसा तसथावरसव्वभूयखेमकरी । तोसे सभावणाओ किंची वोच्छं गुणुद्द सं ॥ ३॥
ताणि उ इमाणि सुव्वय ! महव्वयाई' लोकहियसव्वयाई ' सुयसागरदेसियाई तवसंजमव्वयाई सीलगुणवरव्वयाई सच्चज्जवव्वयाई नरकतिरियमणुयदेव गति-विवज्जकाई कम्मरयविदारगाई' दुसयविमायणका इ सुहसयपवत्तणकाई' कापुरिसदुरुत्तराइ र सप्पुरिसनिसेवियाई निव्वाणगमणमग्ग( सग्ग) पणायकाई संवरदाराई पंच कहियाणि य ( उ )
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भगवया ।
१ 'लोए धिइअव्वयाइ" पाठ कहीं कहीं है ।
२ ' सप्पुरिसतीरियाई' पाठ भी मिलता है ।
-संपादक