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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
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और उन उपायों से क्या-क्या अनर्थ पैदा होते हैं ? तथा उन परिग्रहग्रस्त जीवों को क्या-क्या हानियाँ उठानी पड़ती हैं ? इसका सजीव वर्णन आगे के इस सूत्रपाठ शास्त्रकार ने किया है— परिग्गहस्स य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए" करिति पाणाण वहकरणं, अलियनियडिसाइसंपओगे' कोहमाणमायालो मे ।' इसका भावार्थ यह है कि परिग्रहलिप्सु लोग रातदिन नाना प्रकार की तरकीबें धन, साधन आदि को बटोरने के लिए सोचते रहते हैं और तदनुसार प्रवृत्ति करते रहते हैं । बहुत-से लोग शिल्पाचार्यों से कुंभार का काम, बढ़ई का काम, सुनार का काम आदि सैकड़ों शिल्प या हुन्नर सीखते हैं, अनेक प्रकार की दस्तकारी सीखते हैं । गृहस्थ अपनी आजीविका के लिए कोई भी शिल्प, दस्तकारी या हुन्नर : सीखे, इसमें कोई बुराई नहीं है । परन्तु जब वह हुन्नर, शिल्प या दस्तकारी केवल धन बटोरने के लिए सीखे, लोगों से अपने परिश्रम का मूल्य अत्यधिक पाना चाहे या थोड़ा-सा काम करके ज्यादा से ज्यादा पैसा पाना चाहे तो वह शिल्प जनता की सेवा के बदले जनता का • शोषणरूप बन जाता है । यही कारण है कि जनता का शोषण करने की नीयत से जब किसी भी श्रमकार्य को किया जाता है तो वह जीवन के लिए अनर्थकर हो जाता है ।
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इसका तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति की दृष्टि अपने शिल्प से केवल पैसा कमाने की ही होगी, वह ऐसे ही शिल्पों को अपनाएगा, जो राष्ट्रघातक, समाजघातक या नीतिविरुद्ध होंगे । जैसे कोई व्यक्ति ऐसे यंत्र बना कर दे, जिनसे कामवासना उत्तेजित हो, या ऐसे हुन्नर अपनाए, जिनसे लोग दुर्व्यसनों में अधिकाधिक प्रवृत्त हों ।
उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट बनाने का शिल्प सीखे और उसे अपनाए अथवा शराब बनाने की विधि सीखे और बना कर लोगों को मुहैया करे । इससे जनता का स्वास्थ्य, धन और धर्म तीनों का नाश होगा। ऐसे निकृष्ट शिल्प से शिल्पकार को तो बहुत पैसा मिलेगा, वह तो मालामाल हो जायगा, लेकिन समाज और राष्ट्र का नैतिक पतन होगा, और समाज में अनेक अनर्थ फैलेंगे ।
इसी प्रकार जो लोग शास्त्र में वर्णित और लोकप्रसिद्ध पुरुषों की ७२ कलाएँ केवल परिग्रह के लिए ही सीखते हैं, उनका भी यही हाल है । गृहस्थ के लिये कलाएँ सीखना अपने आप में बुरा नहीं है । लेकिन जब कोई संगीत, नृत्य, चित्र, लेखन आदि विविध कलाएँ केवल पैसा कमाने के लिए सीखेगा, तब वह उनका दुरुपयोग ही करेगा । वह ऐसे अश्लील संगीत का प्रयोग करेगा, जिससे कामवासना भड़कती हो । वह ऐसे नग्न या अर्धनग्न सुन्दरियों के चित्र बनाएगा, जिन्हें देख कर नैतिक पतन होगा । वह अश्लील लेख, कहानी या उपन्यास लिखेगा, जिन्हें पढ़ कर मनुष्य का चरित्र बिगड़ जाएगा । इसी प्रकार वह ऐसे अश्लील नृत्य दिखाएगा, जिससे मनुष्य कामविह्वल हो