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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
'संपाय उप्पायको'-संपातों-संकल्प-विकल्पादि अनर्थों का या उपद्रवों का उत्पादक होने से यह संपातोत्पादक भी कहलाता है। वास्तव में धनधान्यादि परिग्रह के अर्जन, रक्षण और वियोग के निमित्त से आत्मा में अनेक संकल्पविकल्प उठते रहते हैं, जो कर्मबन्ध या दुर्गतिगमन के कारण हैं। और परिग्रह भी इसी प्रकार नाना संकल्प-विकल्प—चिन्ता-दुश्चिन्ता का कारण है, इसलिए 'संपातोत्पादक' को उसका साथी कहा जाय तो अनुचित नहीं।
___ 'कलिकरंडो'–कलि यानी कलह का पिटारा होने से इसे कलिकरण्डो कहा है। वास्तव में परिग्रह लड़ाई-झगड़े, युद्ध, वैर-विरोध, संघर्ष और मनमुटाव का खास कारण है । परिग्रह के कारण संसार में अनेक लड़ाई-झंगड़े, और वैर-विरोध हुए हैं। यहां तक कि सगे भाइयों में, पिता-पुत्र में और पति-पत्नी तक में परिग्रह के कारण ठनी है। कहा भी है
"पिता पुत्रं पुत्रः पितरमभिसंधाय बहुघा । विमोहाद् ईहेते सुखलवमवाप्तुं नृपपदम् । अहो मुग्धो लोको मृतिजननदंष्ट्रान्तरगतो,
न पश्यत्यश्रान्तं तनुमपहरन्तं यमममम् ॥" . अर्थात्--'पिता पुत्र के साथ और पुत्र पिता के साथ मोह-मूढ़तावश बहुधा सुख का लेश प्राप्त करने के किए राजपद के लिए परस्पर लड़ते हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है कि मृत्यु की दाढों तले आये हुए मूढ़ लोग निरन्तर शरीर का संहार करते हुए यम की ओर नहीं देखते।'
भरतचक्रवर्ती ने राज्य के लिए अपने भाई बाहुबली के साथ युद्ध किया। यहाँ तक कि जब वह बाहुबली के साथ दृष्टियुद्ध आदि नियतयुद्धों में हार गया, तब अन्त में बाहुबली का प्राणघात करने की इच्छा से चक्र तक चलाने से नहीं हिचकिचाया। यह सब परिग्रह का ही तो कारण था ।
अतः 'कलिकरंड' को परिग्रह का पर्यायवाची शब्द बताना सार्थक ही है। • 'पवित्थरो'- धन, धान्य आदि पदार्थों के व्यवसाय को फैलाना-जगह-जगह व्यवसाय का बढ़ावा करना-प्रविस्तर कहलाता है। प्रविस्तर भी परिग्रहबुद्धिममत्त्वबुद्धि के कारण हुआ करता है, इसलिए प्रविस्तर को परिग्रह का पुत्र कह दें, तो कोई अत्युक्ति नहीं ।
'अणत्यो'--परिग्रह अनर्थ का कारण होने से इसका एक नाम अनर्थ भी है । शंकराचार्य ने कहा है—'अर्थमनर्थ भावय नित्यम्'अर्थ को सदा अनर्थ समझो। परिग्रह के कारण ही मनुष्य हिंसा, असत्य, चोरी, बेईमानी, कामभोगसेवन, स्वार्थ, लोभ आदि पापकर्म करता है । आभूषण एवं धनादि परिग्रह के लिए हत्या, लूट,डकैती,मारपीट आदि अनेक