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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
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मनचाहे कामभोगों को भोगने की ही उसकी धुन बनी रहती है। भोग मानवजीवन को गला देते हैं, निःसत्त्व कर डालते हैं,सत्य, अहिंसा, न्यायनीति के गुणों से और शरीर से भी भ्रष्ट कर देते हैं । जब मनुष्य के पास अनापसनाप धन के रूप में परिग्रह आता है तो वह व्यभिचारसेवन या अनाचारसेवन करने का व्यसनी या आदी हो जाता है, और उसकी इज्जत-आबरू मिट्टी में मिल जाती है। और परिग्रहवृक्ष का अग्रशिखर है—शारीरिक खेद, चित्त में खिन्नता, परस्पर कलह, गालीगलौज आदि । परिग्रह की प्राप्ति के लिए बहुत-सी बार परिग्रहलोलुप व्यक्ति अन्याय, अनीति, गबन,कमजोरी, शोषण, चोरी आदि अनेक अनैतिक तरीकों को अपनाता है। उनमें उसे मानसिक खेद तो होता ही है । बार-बार संकट से घिर जाने का भय,पकड़े जाने का डर, दण्ड मिलने की आशंका, अनुचित ढंग से प्राप्त धन आदि को छिपाने, दबाने या सरकार की नजरों से बचने की मन में योजना बनाने की धुन, बार-बार दौड़धूप से घबराहट का अनुभव, ये और इसी प्रकार के विविध मानसिक खेद तो परिग्रही को होते ही रहते हैं । शारीरिकखेद की भी कोई सीमा नहीं है। परिग्रहधारी को चोर, डाकू, सरकार आदि से मारे-पीटे जाने, सताये जाने या दण्डित किये जाने का खतरा रहता है। उसे कई दिनों तक नींद नहीं आती। अपच, मन्दाग्नि, क्षय रक्तचाप, हृदयपीड़ा आदि भयंकर रोग उसे प्रायः घेरे रहते हैं। और परस्पर गाजीगलौज, डांटडपट आदि बुरे वचन तो परिग्रह के कारण मनुष्य को प्राप्त होते ही हैं ।
वास्तव में परिग्रह विषवृक्ष की तरह महाभयंकर है। लोग इससे छुटकारा पाने के बदले इसके साथ अधिकाधिक चिपटते जाते हैं। इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं—'नरपतिसंपूजितो बहुजणस्स हिययदइओ।' अर्थात्-परिग्रह भोग के पुतले राजा आदि लोगों द्वारा ही अधिक सम्मान्य और आदरणीय है। आजकल तो क्या राजा, क्या रंक ; क्या. खेती करने वाला और क्या मजदूर ; प्रायः सभी परिग्रह या परिग्रही का ही अधिक सम्मान-सत्कार करते हैं, उसे ही आदर देते हैं। यह बहुत लोगों के हृदय का प्यारा है। लड़का अगर कमाऊ है, तो वह सबको प्यारा लगता है। बहू अगर दहेज में बहुत धन लाई है तो सबको अच्छी लगती है ; इसी तरह घर में पिता कमाता है तो पुत्र को या पुत्र की माता को अच्छा लगता है। इसलिए परिग्रह या परिग्रही को बहुत-से लोगों का हृदयवल्लभ बताया है।
__ 'मोक्खवरमोत्तिमग्गस्स फलिहभूओ'–वास्तव में मोह या आसक्ति ही मोक्षप्राप्ति में मुख्य रुकावट है। मोक्ष का सर्वश्रेष्ठ उपाय—निर्लोभता—मुक्ति है। परिग्रह मोहरूप या आसक्ति रूप होने से निर्लोभता—अनासक्ति के मार्ग में अर्गला के समान है। समस्त कर्मबन्धनों को तोड़ देने वाले आत्मध्यान आदि शुद्ध परिणामरूप भावमोक्ष का मार्ग निर्लोभता है; जिसे पाने में परिग्रह एक भयंकर बाधक है । यह एक