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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
और एक दिन कालकवलित हो गए; वैसे ही बलदेव और वासुदेव भी कामभोगों से तृप्त न हो कर एक दिन इस संसार से चल देते हैं'—ऐसा पूर्वापर सम्बध यहाँ समझ लेना चाहिए । यद्यपि इस सूत्रपाठ में सामान्यरूप से नौ बलभद्रों और नौ नारायणों के विषय में निरूपण किया गया है; तथापि कहीं-कहीं कुछ विशेषण खासतौर से बलदेव (बलराम) और वासुदेव (श्रीकृष्ण) को लक्ष्य में रख कर प्रयुक्त किये गये हैं।
सामान्य बलदेव और वासुदेव के लिए प्रयुक्त विशेषण-पवरपुरिसा महाबलपरक्कमा महाधणुवियट्टका महासत्तसागरा दुखरा धणुद्धरा नरवसभा' यहाँ तक जितने भी पद हैं, वे जितने भी बलभद्र और नारायण हुए हैं, उन सबके लिए प्रयुक्त हुए हैं। इन सबका अर्थ तो स्पष्ट है ही। संक्षेप में कहा जा सकता है, कि वे संसार के अद्वितीय शक्तिमान्, साहसी और 'अजेय योद्धा एवं बेजोड़ धनुर्धारी होते हैं, इसलिए सर्वोत्तम पुरुष कहलाते हैं । 'रामकेसवा भायरो'- इसके बाद इन दो पदों से आगे की पंक्तियां खासतौर से बलराम बलदेव) और केशव (वासुदेव श्रीकृष्ण) के लिए प्रयुक्त की गई हैं। यानी रामकेसवा' पद से ले कर ..........."हिययदइया' तक एवं और आगे 'तालबउश्विद्धगरलकेऊ' से ले कर 'जरासिंध-माणमहणा' तक एवं
और आगे 'हलमुसलकणकपाणी, संखचक्क-गयसत्तिणंदगधरा पवरज्जलसुकतविमलकोथूभतिरीडधारी' आदि पद विशेषरूप से बलराम और श्रीकृष्ण इन दोनों के लिए ही प्रयुक्त हैं । बाकी के सारे पद सामान्यतः बलदेव और वासुदेव के लिए प्रयुक्त किए गये हैं।
___ नौ बलभद्र और नौ नारायण ६३ श्लाध्य-प्रशंसनीय पुरुषों में से हैं । इन 8 बलभद्रों और ६ नारायणों में से बलराम और श्रीकृष्ण ये दोनों भाई प्रधान थे। जैन इतिहास के अनुसार ये इस अवसर्पिणी काल के नौवें बलदेव (बलभद्र) और नारायण (वासुदेव) थे । ये दोनों जगत् में अतिविख्यात हुए । इन्होंने संसार में कई अद्भुत,अपूर्व
और असाधारण पराक्रम के कार्य किए । वे सिर्फ दो ही पराक्रमी नहीं थे,अपितु उनका सारा परिवार–५६ कोटि यादव सहित अतुलबलधारी और पराक्रमी था। वसुदेव,समुद्रविजय आदि दस पूज्य पुरुष इस वंश के मुखिया थे। ये दोनों अपने अद्भुत जौहरों से उन सबके हृदय को प्रफुल्लित करने वाले थे। यादवजाति के प्रद्युम्न आदि साढ़े तीन करोड़ स्फूर्तिमान कुमार थे, उन्हें भी ये दोनों अत्यन्त प्रिय और उनके हृदय के श्रद्ध य थे । बलरामजी की माता का नाम महारानी रोहिणी देवी था और श्रीकृष्ण की माता का नाम महारानी देवकी देवी था । इन दोनों के हदयों को ये दोनों आनन्दित करने वाले थे । ये भरतक्षेत्र के आधे भाग के स्वामी थे। इसलिए अर्धभरत के भिन्न भिन्न राज्यों के स्वामी १६ हजार मुकुटबद्ध राजा उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करते