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चतुर्थं अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव
हैं, ( कंता) वे विशेष कान्तिवाली - कमनीय एवं (सव्वस्स अणुमयाओ) सब लोगों को अनुमत- प्रिय लगने वाली होती हैं । ( ववगयवलिपलित वंगदुवन्नवाधि-दोहग्गसोयमुक्काओ) वे चेहरे पर झुर्रियों, सफेद बालों, अंगहीनता -- अपंगपन, कुरूपता, व्याधि - बीमारी, दुर्भाग्य -सुहाग से रहितता, तथा शोक - चिन्ता से मुक्त होती हैं, (य) और ( उच्चत्तरेण) ऊँचाई में (नराण थोवूणमूसियाओ) पुरुषों से कुछ कम ऊँची होती हैं,(सिंगारागारचारुवेसाओ ) वे शृंगार की घर होती हैं, उनकी वेशभूषा बहुत ही सुन्दर होती है। (सुंदरथण जघण- वयण-कर-चरण-णयणा) उनके स्तन, कमर के आगे का हिस्सा - पेडू, मुख - चेहरा, हाथ, पैर और नेत्र बड़े सुन्दर होते हैं । (लावन्नरूवजोवण्णगुणवया) वे लावण्य, रूप और यौवन के उत्तम गुणों से सम्पन्न होती हैं । (नंदणaण विवरचारिणीओ अच्छराओ व्व) वे ऐसी लगती हैं, मानो नंदनवन में विचरण करने वाली अप्सराएँ हों, वास्तव में वे ( उत्तरकुरुमाणुसच्छराओ) उत्तरकुरुक्षेत्र की मानवी अप्सराएँ होती हैं। (अच्छेरग- पेच्छणिज्जाओ) वे आश्चर्यपूर्णक दर्शनीयदेखने जैसी ( होंति) होती हैं । (य) तथा ( तिन्नि) तीन (पलियोवमाइ ) पल्योपम की ( परमाउं) उत्कृष्ट आयु को ( पालयित्ता) पाल कर - भोग कर (ताओ वि) ने भी ( कामाणं अवितित्ता) कामभोगों से अतृप्त ही, ( मरणधम्मं ) मृत्यु को — कालधर्म को, ( उवणमंति) प्राप्त होती हैं ।
मूलार्थ — और उन अकमभूमि - भोगभूमि के मनुष्यों की स्त्रियाँ भी सौम्य - शान्त स्वभाव वाली, भलीभांति रचित सभी अंगों से सुन्दर और महिलाओं के मुख्य-मुख्य गुणों से युक्त होती हैं । उनके चरण अत्यन्त कमनीय, चलते समय कोमल वस्तुओं से भी अतिकोमल, सुकुमार, कछुए की तरह बीच में उभरे हुए, मनोहर होते हैं । उनकी अंगुलियाँ सीधी, कोमल, पुष्ट और परस्पर सटी हुई होती हैं, उनके नख आगे को उठे हुए, सुखद या सुरचित, पतले, तांबे के समान लाल, साफ एवं चिकने होते हैं । उनकी दोनों जंघाएँ - पिंडलियाँ रोओं से रहित, छाते की-सी उभरी हुई, गोलमटोल, उत्तम और मांगल्यचिह्नों से युक्त, और देखने वालों को प्रिय होती हैं । उनके घुटने अच्छी तरह से बने हुए और मांस से ढके होने से अच्छे लगते हैं । उनकी संघियाँ जोड़ें मांस से पुष्ट, प्रशस्त और सुगठित - परस्पर बंधी हुई होती हैं । उनके दोनों उरू-पिंडलियों के ऊपर के भाग, जांघें - केले के खंभे से भी अधिक
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