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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
सम्बोधित करते हुए द्रुपदराजा ने प्रतिज्ञा की घोषणा कि "यह जो सामने वेधयंत्र लगाया गया है, उसके द्वारा तीव्रगति से घूमती हुई ऊपर में यंत्रस्थ मछली का प्रतिबम्ब नीचे रखी हुई कड़ाही के तेल में भी घूम रहा है । जो वीर नीचे प्रतिबिम्ब को - देखते हुए धनुष से उस मछली का ( लक्ष्य का ) वेध कर देगा ; उसी के गले में द्रौपदी वरमाला डालेगी ।" यह सुनते ही वहां उपस्थित सभी राजाओं ने अपना-अपना हस्तकौशल दिखाया, लेकिन कोई भी मत्स्यवेध करने में सफल न हो सका । अन्त में, पांडवों का नंबर आया । अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की आज्ञा मिलने पर धनुर्विद्याविशारद अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठाया और तत्काल लक्ष्यवेध कर दिया । अपने कार्य में सफल होते ही अर्जुन के जयनाद से सभामंडप गूंज उठा । राजा द्रुपद ने भी अत्यन्त हर्षित होकर द्रौपदी को अर्जुन के गले में वरमाला डालने की आज्ञा दी । द्रौपदी अपनी दासी के साथ मंडप में उपस्थित थी । वह अर्जुन के गले में ही माला डालने जा रही थी, किन्तु पूर्वकृतनिदान के प्रभाव से दैवयोगात् वह माला पाँचों भाइयों के गले में जा पड़ी। इस प्रकार पूर्वकृतकर्मानुसार द्रौपदी के युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम आदि पांच पति कहलाए ।
एक समय पाण्डु राजा राजसभा में सिंहासन पर बैठे थे । उनके पास ही कुन्ती महारानी बैठी थी और युधिष्ठिर आदि पांचों भाई भी बैठे हुए थे । द्रौपदी भी वहीं थी। तभी आकाश से उतर कर देवर्षि नारद सभा में आए । राजा आदि ने तुरंत खड़े होकर नारद ऋषि का आदर-सम्मान किया। लेकिन द्रौपदी किसी कारण - वश उनका उचित सम्मान न कर सकी। इस पर नारदजी का पारा गर्म हो गया । उन्होंने द्रौपदी द्वारा किए हुए इस अपमान का बदला लेने की ठान ली । उन्होंने सोचा- 'द्रौपदी को अपने रूप पर बड़ा गर्व है । इसके इस गर्व को चूर-चूर न कर दिखाऊँ तो मेरा नाम नारद ही क्या ?' वे इस दृढ़संकल्पानुसार मन ही मन द्रौपदी को नीचा दिखाने की योजना बना कर वहाँ से चल दिए । देश देशान्तर घूमते हुए नारदजी धातकीखंड के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की राजधानी अमरकंका' नगरी में पहुंचे । वहां के राजा पद्मनाभ ने नारदजी को अपनी राजसभा में आये देख उनका बहुत आदर-सत्कार किया। कुशलक्षेम पूछने के बाद राजा ने नारदजी से पूछा" ऋषिवर ! आप की सर्वत्र अबाधित गति है । आपको किसी भी जगह जाने की रोकटोक नहीं है । इसलिए यह बताइए कि 'सुन्दरियों से भरे मेरे अन्तःपुर ( रनवास) जैसा
१ अपरकंका नाम भी है ।
-संपादक
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