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श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र
संस्कृतच्छाया जम्बू ! इतः परिग्रहः पंचमस्तु नियमात् नानामणि-कनक-रत्न-महाहपरिमल-सपुत्रदार-परिजन-दासी - दास - भृतक -प्रष्य-हेय-गज-गो-महिषोष्ट्रखराज-गवेलक-शिविका-शकट-रथ-यान-युग्य-स्यन्दन-शयनासन-वाहन-प्यधन-धान्य-पान-भोजनाच्छादन-गन्ध-माल्य-भाजन-भवनविधि चैव बहुविधिक भरतं नग-नगर-निगम-जनपद-पुरवर-द्रोणमुख-खेट-कवट-मडम्ब-संवाह-पत्तन सहस्रपरिमंडितम्, स्तिमितमेदिनीकम्, एकच्छत्रम्, ससागरम्, भुक्त्वा वसुधाम् अपरिमितानन्ततृष्णाऽनुगतमहेच्छसारनिरयमूलो, लोभकलिकषायमहास्कन्धश्चिन्ताशतनिचितविपुलशालो(शाखो), गौरवविस्तारवदनविट पो, निकृतित्वचापत्रपल्लवधरः, पुष्पफलं यस्य कामभोगाः, आयासविसरणा-कलह - प्रकम्पिताऽग्रशिखरो, नरपतिसंपूजितो, बहुजनस्य हृदयदयितः; अस्य मोक्षवरमुक्तिमार्गस्य परिघभूतश्चरममधर्म द्वारम् ॥ (सू० १७) ॥
पदार्थान्वय—श्री सुधर्मास्वामीजी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं(जंबू) हे जम्बू ! (इत्तो) इस चौथे अब्रह्मनामक आश्रवद्वार के अनन्तर (पंचमो उ), पांचवां आश्रव (नियमा) नियम से, (परिग्गहो। परिग्रह है, (बहुविहीयं) वह अनेक प्रकार का है । (णाणामणि-कणग-रयण-पेस-हय-गय-गो-महिस-उट्ट-खर-महरिह - परिमल सपुत्तदार-परिजण-दासी-दास-भयग-अय-गवेलग-सीया-सगड-रह - जाण-जुग्ग-संदणसयणासण-वाहण-कुविय-धण-धन्न-पाण-भोयणाच्छायण-गंध-मल्ल-भायण - भवणविहिं) अनेक प्रकार की मणियों, सुवर्ण, कर्केतनादि रत्नों, बहुमूल्य सुगन्धित द्रव्यों, पुत्रों सहित स्त्रियों, परिवारों, दासी-दासों, कर्मचारियों, नौकर-चाकरों, हाथियों, घोड़ों, गायों, बैलों, भेंसों, ऊंटों, गधों,बकरे-बकरियों,भेड़ों, शिविकाओं—पालकियों, गाड़ियों, रथों, जहाजों या विशेष प्रकार की सवारियों, गोल्ल नामक देशविशेष में प्रसिद्ध दो हाथ की पालकियों, विशेष प्रकार के रथों,शय्याओं, आसनों, वाहनों-नौकाओं, कुप्यसोने-चांदी को छोड़ कर घर का शेष सामान,धन--नकद रुपया-पैसा आदि, धान्योंगेहूँ-चावल आदि अनाजों, दूध आदि पेय पदार्थों, भोज्यपदार्थों, सुगन्धिद्रव्यों, पुष्प मालाओं, बर्तन-भांडों और मकानों के प्राप्त संयोगों का; (चेव) उसी प्रकार (णगणगर-णियम-जणवय पुरवर-दोणमुह-खेड-कव्वड-मडंब-संवाह - पट्टण -सहस्सपरिमंडियं) हजारों पर्वतों, नगरों, निगमों-व्यापारी मंडियों, प्रदेशों, महानगरों, बंदरगाहों या जलमार्ग व स्थलमार्ग से जुड़े हुए स्थानों, चारों ओर धूल के कोट वाली बस्तियों