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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव
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। प्रत्येक वासुदेव के १६ हजार विभिन्न देशों की अद्वितीय सुन्दरी हृदयवल्लभा पत्नियाँ होती हैं । गृहस्थ का सुख धन के बिना नहीं टिकता, इसलिए शास्त्रकार ने उनके वैभव की चर्चा की है कि उनके खजानों में नाना प्रकार की चन्द्रकान्त आदि मणियाँ और कर्केतन आदि रत्न तथा सुवर्ण आदि द्रव्य भरे रहते थे ।
धन की रक्षा सैनिकशक्ति के बिना नहीं होती। इसलिए शास्त्रकार ने कहा – 'हयगय रहसहस्तसामी' - वे हजारों घोड़ों, हाथियों और रथों के स्वामी थे । राजाओं की महत्ता राज्य से होती है, इसीलिये बताया है- 'गामागरनगर ashaas इत्यादि । यानी गाँव, नगर, खानें, खेड़े, कस्बे आदि हजारों जनपदों से उनका राज्य सुशोभित था । उनके राज्य की सीमा उत्तर में वैताढ्यगिरि तक थी, शेष तीनों ओर वह लवणसमुद्र से घिरी हुई थी । भरतक्षेत्र के ठीक मध्यभाग में वैताढ्यगिरि है, जिसे रजताचल भी कहते हैं । वैताढ्यपर्वत ही भरतक्षेत्र को दो खण्डों में विभक्त करता है - उत्तरभारत और दक्षिणभारत । बलदेव और वासुदेव दक्षिण भरतार्द्ध के स्वामी थे ।
बलदेव वासुदेव के असाधारण गुण यद्यपि बलदेव और वासुदेव दोनों के पास पूर्वजन्मकृत तप और साधना के प्रभाव से सुखभोग के साधनों की कमी नहीं रहती, उनके सामने अभाव कभी मुंह बाए नहीं खड़ा रहता । कोई भी सांसारिक भौतिक वस्तु ऐसी नहीं है, जो उन्हें उपलब्ध न हो सकती हो, तथापि उनमें कुछ असाधारण गुण होते हैं, जिसके कारण वे उन भोगों के बीच रहते हुए भी कई सौ वर्ष की इतनी लंबी आयु तक अपनी जीवनयात्रा मनुष्यलोक में यापनकर लेते हैं । नहीं तो, साधारण गुणहीन मानव भोगों का कीड़ा बन कर कभी का समाप्त हो गया होता। - इसी बात को दृष्टिगत रख कर शास्त्रकार उनमें पाये जाने वाले असाधारण गुणों का निरूपण करते हैं, जिनसे कि दुनिया उन्हें श्रेष्ठ मानव के रूप में पहिचानती है और युगों-युगों तक वे मानव के मन-मस्तिष्क पर चढ़ कर अमर हो जाते हैं
(१) धैर्य और कीर्ति के धनी - मनुष्य को हर कार्य में सफलता और आत्मविश्वास पैदा कराने वाला गुण धैर्य है । धीर वही कहलाता है - जिसका मन अनेक झंझावातों और क्षोभ पैदा करने के निमित्तों के आ पड़ने पर भी क्षुब्ध न हो । कहा भी है
'विकार हे सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः ।'
'विकार का कारण उपस्थित होने पर भी जिनके चित्त विकृत नहीं होते, वे ही धीर पुरुष होते हैं ।' वास्तव में हर परिस्थिति में, हर हालत में जो मनुष्य समत्वसंतुलन की पगडंडी पर स्थिर रह सकता हो, वही धैर्यवान कहलाता है । बलदेव और वासुदेव दोनों के जीवन में ऐसे अनेक अंधड़ आए ; लेकिन वे अपने पथ से विचलित