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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
बांध दिया जाता है, दोनों जांघों को चीरा या मोड़ा जाता है, काठ के एक खास यंत्र से उनके घुटने, कलाई आदि जोड़ों को बांधा जाता है,तपी हुई लोहे की सलाई और सुई शरीर में चुभोई जाती है । वसूले से काठ की तरह उनके शरीर को छीला जाता है। ऐसी अनेक पीड़ाएं उन्हें दी जाती हैं । शरीर पर हुए धावों पर नमक आदि खारे, मिर्च आदि तीखे, नीम आदि कडुवे पदार्थ छिड़के जाते हैं । इस तरह की यातनाओं के सैकड़ों निमित्तों को लेकर वे पीडा पाते हैं। कभी-कभी आदेश पाते ही काम करने वाले जेल के कर नौकरों द्वारा उनकी छाती पर बड़े वजनदार काठ को रख कर जोर से दबाया जाता है, जिससे उनकी हड्डियां और पसलियां टूट जाती हैं । मछली को पकड़ने के तीखे नोकदार कांटे के समान काले लोहे का डंडा उनकी छाती, पेट, गुदा और पीठ में भोंक दिया जाता है, इस प्रकार उन्हें पीड़ित करके उनका हृदय मथ दिया जाता है और उनके अंग-अंग चूर-चूर कर कर दिये जाते हैं । कितने ही चोर, जिन्होंने कोई बड़ा अपराध नहीं किया है, फिर भी वैरभाव रखने वाले यमदूतों के समान क र सिपाहियों द्वारा वे पीटे जाते हैं और जेलखाने में उन अभागों के अंगोपांगों पर थप्पड़ों, मुक्कों, घूसों, चमड़े के पट्टों, लोहे के कुश, पतले चाबुक, चमड़े के चाबुक, लात और चमड़े की बड़ी रस्सी एवं बेतों के सैकड़ों प्रहारों से चोट पहुंचाई जाती है। शरीर पर लटकती हुई चमड़ी पर हुए घावों की असह्य वेदना के कारण उन्हें चोरी से अब नफरत हो चुकी है। फिर भी पुलिस के सिपाहियों द्वारा हथौड़ों से कूट कर तैयार की गई दो बेड़ियों से उनके अंग सिकोड़े
और मोड़े जाते हैं,जेल की कोठरी में उन्हें स्वतन्त्रता से मलमूत्र भी नहीं करने दिया जाता, न बोलने दिया जाता है, और न इधर-उधर घूमने की छूट दी जाती है । इन तथा इसी प्रकार की अन्य वेदनाओं को वे पापी भोगते हैं, जो इन्द्रियों को वश में नही रखते, इन्द्रियों के गुलाम होने से पीड़ित हैं, जो अत्यन्त मोह से मूढ़ बने हुए हैं, पराये धन में लुब्ध हैं, जो स्पर्शेन्द्रियों के विषय में अत्यन्त आसक्त हैं, जो स्त्रीसम्बन्धी रूप, शब्द, रस, गन्ध तथा इष्ट रति और वांछित भोग (सहवास) की तृष्णा से आतुर हैं तथा सिर्फ धन देख कर ही संतुष्ट होने वाले वे लोग राजपुरुषों-सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार किए जाते हैं । फिर भी पापकर्म के बुरे नतीजे को नहीं समझने वाले वे