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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
दप्पो-अत्यधिक स्वादिष्ट एवं गरिष्ठ वस्तुओं का सेवन शरीर को पुष्ट बना देता है; उससे भी कामविकार पैदा होता है। जैसा कि उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है
रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा हवंति । दित्तं च कामा समभिवंति, दुमं जहा साउफलं तु पक्खी ॥
अर्थात्--शरीर को पौष्टिक बनाने वाले रसों-स्वादिष्ट चीजों का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्रायः रसीले पदार्थ दर्प (उत्तेजना) पैदा करने वाले होते हैं । और दर्पयुक्त मनुष्य को कामवासनाएँ उसी तरह सताती हैं,जैसे स्वादिष्ट फल वाले पेड़ को पक्षी पीड़ित करते हैं।
___अथवा वैभव आदि का दर्प भी मनुष्य को व्यभिचार के रास्ते चढ़ा देता है। इसलिए इसे अब्रह्म का समानार्थक कहना उचित है।
मोहो-यह अज्ञान और मूढता से उत्पन्न होता है, इसलिए इसे मोह कहा है। वास्तव में यह वेद नामक नोकषाय,जो चारित्रमोहनीय कर्म का एक भेद है; उसके उदय से उत्पन्न होता है, इसलिए इसे मोह कहा है। मोह में अंधा होकर ही मनुष्य कामवासना से प्रेरित होता है। मोह की भयंकरता का वर्णन एक आचार्य ने बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है
दृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थितं, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यन्नास्ति तत्पश्यति । कुन्देन्दीवरपूर्णचन्द्र कलशश्रीमल्लतापल्लवाः
नारोप्याशुचिराशिषु प्रियतमागात्रेषु यन्मोदते ॥ अर्थात्-अन्धा मनुष्य तो सामने रखी हुई घड़ा, कपड़ा आदि प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली चीजों को ही नहीं देख पाता; किन्तु राग (मोह) से अन्धा बना हुआ व्यक्ति तो जो प्रत्यक्ष में विद्यमान है उसको तो नहीं देखता,किन्तु जो वस्तु उसके सामने प्रत्यक्ष में मौजूद नहीं है, उसे देखता है। यही कारण है कि वह अपनी मानी हुई प्रियतमा के अत्यन्त घिनौने अपवित्र शरीर में झूठी कल्पनाएँ करके प्रसन्न होता है । उसके हड्डी के दांतों को कुन्दपुष्प मानता है, अस्थिमय मलयुक्त नेत्रों को नीलकमल मानता है, कफ आदि घृणित पदार्थों से भरे हुए मुख को पूर्ण चन्द्रमा की उपमा देता है, मांस के पिंडरूप स्तनों को स्वर्ण कलश मानता है,उसकी हड्डी,मांस,रुधिर आदि से भरी हुई अपवित्र भुजाओं को सुन्दर लता की और उंगलियों को कोमल किसलयों-कोंपलों की उपमा देता है। यह सब उसके अज्ञान और मोह की ही करामात है।
इसलिए मोह को अब्रह्म का साथी कहना ठीक ही है।
'मणसंखोहो-चित्त में चंचलता और व्यग्रता आए बिना काम-वासना उत्पन्न नहीं हो सकती। किसी भी सुन्दरी को देख कर मन चलायमान न हो तो काम-वासना पैदा नहीं होती; लेकिन जब मन विचलित होता है, तभी वासना जागती है और वही