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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव
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अथवा 'चरत्' का अर्थ यह भी हो सकता है कि सभी प्राणियों के जीवन में यह चलता रहता है, चलायमान होने वाला भी है । इसलिए इसका 'चरत्' नाम भी सार्थक हैं । चर् धातु जैसे गति अर्थ में है, वैसे भक्षण अर्थ में भी है। उसके अनुसार 'चरत्' का यह अर्थ भी उचित कहा जा सकता है कि जो चारित्र गुणों को चर जाय — उन्हें सफाचट कर दे । वास्तव में अब्रह्मचर्य विश्वव्यापी, सर्व प्राणियों में संचरण करने वाला या चारित्र गुणों का चरने वाला है, अतः इसका चरत् नाम सार्थक है । 'संसग्गि' - स्त्री और पुरुषों का संसर्ग - बार-बार एकान्त संपर्क या संस्पर्श भी कामविकारों को पैदा करने वाला होता है । इसलिए संसर्गजन्य होने से इसे अब्रह्म का पर्यायवाची कहना ठीक ही है । कहा भी है
'नामाऽपि स्त्रीति संह्लादि विकरोत्येव मानसम् । किं पुनर्दर्शनं तस्या विलासोल्लासितभ्रुवः ॥'
'स्त्री का नाम भी विकारी मन में आह्लाद पैदा कर देता है, मन में विकार वासना पैदा कर देता है तो फिर विलास ( हाव भाव ) के साथ तिरछे कटाक्ष वाली स्त्री का दर्शन या स्पर्श क्या नहीं कर सकता ?'
'सेवणाधिकारों' - यह चोरी आदि विरोधी सेवनाओं - पापकर्मों में प्रवृत्त कराने वाला है । क्योंकि विषयासक्त कामी पुरुष स्त्री के इशारे पर चोरी, हत्या, मद्यपान, मांसभक्षण आदि सभी अकार्यों में प्रवृत्त हो जाता है । कहा भी है'सर्वेऽनर्था विधीयन्ते नरैरर्थैकलालसैर् । अस्तु प्रार्थ्यते प्राय: प्रेयसी प्रेमकामिभिः
अर्थात् — अर्थ की लालसा वाले मनुष्य दुनिया भर के सभी अनर्थों को करने के लिए उद्यत हो जाते हैं; और प्रेमिकाओं का प्रेम चाहने वाले लोग धन अवश्य चाहते हैं ।
इसलिए पापाचारों में नियुक्त या प्रेरित करने वाला होने से इसे अब्रह्म का भाई कहना उचित ही है ।
संकप्पो — अब्रह्मचर्य का सर्वप्रथम प्रवेश मन के संकल्प विकल्प से होता है | कहा भी है
'काम ! जानामि ते रूपम्, संकल्पात् किल जायसे । न त्वां संकल्पयिष्यामि ततो मे न भविष्यसि ॥'
हे काम ! मैं तेरे स्वरूप को जानता हूं । तू संकल्प से ही तो पैदा होता है । मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूँगा तो तू मेरी आत्मा में उत्पन्न न हो सकेगा ।
इसलिए संकल्प से पैदा होने के कारण इसे अब्रह्म का पर्यायवाची कहना ठीक है । बाणा पाणं - अब्रह्म संयम के पद अर्थात् स्थानों का बाधक है, अतः इसका बाधना नाम भी उचित है । 'पया' का संस्कृत रूप प्रजा भी होता है, अतः अब्रह्म संयमी मानव प्रजा को बाधा पहुँचाने वाला है ।