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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान -आश्र
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फंदा लगा रहता है, जिसे कैदी के गले में पहना दिया जाता है । वरत्र' ( बरत ) चमड़े की मोटी मजबूत रस्सी होती है, जिससे कैदी के सारे शरीर को कस कर बांध दिया जाता है । लोहे की सांकल से कैदी के हाथ आदि बांध कर सिपाही उस कैदी को पकड़े रहता है, अथवा कभी-कभी स्तंभ आदि के साथ बांध भी देता है । हत्थंदुय यानी 'हस्तान्दुक' कैदी के हाथ को बांधने का लोह का एक यंत्र होता है । 'वर्धपट्ट' चमड़े का वह पट्टा होता है, जिससे अपराधी के भुजा, जांघ आदि अवयवों को खूब कस कर बांध दिया जाता है । अथवा उस पट्ट े को गीला करके कैदी के मस्तक पर कस कर लपेट दिया जाता है । ज्यों-ज्यों वह पट्टा सूखता जाता है, त्यों-त्यों वह कैदी के मस्तक में
घुसता जाता है और इससे उसके मस्तक का मांस बाहर निकल आता है । यह भयंकर दंड उस अपराधी को दिया जाता है, जिसने भयंकर अपराध किया हो। इस महान् दुःख से पीड़ित हो कर वह काल के गाल में चला जाता है । 'दामक' पैरों को बांधने की एक रस्सी होती है । 'निष्कोटन एक खास किस्म का बंधन होता है, जिससे कैदी के हाथ पैर मोड़ कर बांधे जाते हैं । ये और इस प्रकार के और भी सैकड़ों बंधन के साधन जेलखाने में होते हैं, जो कैदियों के दुःखों को बढ़ाने वाले होते हैं । जेल के अधिकारी अपराधियों को चुन-चुन कर ऐसी सजा देते हैं और उनके अंगोपांगों को तोड़-मरोड़ sed हैं ।
इतनी ही सजा दे कर वे विराम नहीं लेते; अपितु वे और भी तरह-तरह की यातनाएँ कैदियों को देते हैं, जिनका उल्लेख शास्त्रकार करते हैं— उन अभागे कैदियों के पैर चौड़े करके काठ के एक यंत्र के छेदों में फंसा दिये जाते हैं । कई कैदी लोहे के पींजरों और भूमिगृहों में डाल दिये जाते हैं, अंधे कुए में उतार दिये जाते हैं, जेल की कालकोठरी में बंद कर दिये जाते हैं ; कील, जूआ या गाड़ी का पहिया उनके गले आदि में बांध दिया जाता है । कितने ही कैदियों के सिर झुका कर उनके हाथों को जांघों के बीच में करके गठड़ी-सा बांध कर लुढ़का देते हैं; कइयों को खंभे के साथ बांध देते हैं, कुछ कैदियों के पैर ऊपर में बांध कर उन्हें औंधे मुंह लटका देते हैं । इन और ऐसी ही विविध यातनाओं से पीड़ित कैदी गर्दन नीची करके मस्तक और छाती को बांध देने के कारण पूरी तरह श्वास भी नहीं ले सकते । उनका श्वास ऊपर ही रुक जाता है । वे हांफने लगते हैं । उनके पेट की आंतें बाहर निकल आती हैं । इतना होने पर भी उन अभागे कैदियों को बंदीघर के सिपाही चैन नहीं लेने देते । वे कभी तो चमड़े की रस्सी पानी में भिगो कर उनके मस्तक पर पगड़ी की तरह बांध देते हैं ; कभी घुटने और कोहनी आदि शरीर के जोड़ों को काठ के यंत्र - विशेष
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