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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
२६६ इसी प्रकार लोभ पर जब इच्छाओं के पंख लग जाते हैं तो मनुष्य उससे प्रेरित हो कर पराये धन या परवस्तु को हड़पने, पराई अमानत को हजम करने
और दूसरे की वस्तु को अपने कब्जे में करने का प्रयत्न करता है । इसलिए यह ठीक कहा है कि बढ़ी हुई इच्छाओं वाले एवं लोभ से ग्रस्त मनुष्य हो चोरी का मार्ग अपनाते हैं । मनुष्य पहले अपनी इच्छाओं पर लगाम नहीं लगाता ; अतः बाद में अपनी उत्कट इच्छा की पूर्ति उचित मार्ग से न होने पर वह अनुचित मार्ग को अपनाता है, वह अनुचित-अनीतिमय मार्ग ही चोरी है।
. दद्दरओवीलगा—कुछ चोर ऐसे होते हैं, जो कंठ से ऐसी आवाज निकालते हैं, जिससे वे पहिचाने न जा सकें। इस तरह वे गिरफ्तार करने वालों के चंगुल से बच कर भाग निकलते हैं । अथवा अपनी डरावनी आवाज से लोगों को भयभीत करके या धमकी दे कर लोगों को पीड़ित करके उनसे धन छीन लेते हैं। अथवा इस पद का यह भी तात्पर्य है कि कुछ लोग वाणी के चातुर्य से दूसरों को प्रभावित करके ठगते हैं, परधनहरण करते हैं । कई लोग झूठ बोल कर वाणी का आडम्बर रच कर जाल में ऐसे फंसाते हैं कि श्रोता लोग उन पर धन की वर्षा करने लगते हैं। यह भी चोरी का एक प्रकार है। दूसरों की जेब से पैसा निकलवाने के लिए कुछ लोग बड़े-बड़े लच्छेदार जोशीले भाषण देते हैं, जिसमें वे श्रोताओं की झूठी प्रशंसा करके उन्हें कुछ न कुछ देने के लिए विवश कर देते हैं । अथवा वाग्जाल में फंसा कर भोलेभाले लोगों को ठग लेते हैं। ठगी भी चोरी करने के अपराध में परिगणित होती है।
__ गेहिया–दूसरों के अधिकार की वस्तु पर गृद्ध की तरह दृष्टि गड़ाए हुए या गृद्धि एवं आसक्ति रखने वाले चोर 'गेहिया' कहलाते हैं ; जो मौका पाते ही पराये माल पर हाथ साफ कर जाते हैं। जब मनुष्य की आसक्ति परपदार्थ या परद्रव्य में बढ़ जाती है तब उसकी पूर्ति के लिए वह चोरी जैसे दुष्कृत्य को अपनाता है। आसक्ति ही मनुष्य को छिप कर, गुप्त रूप से काम करने को विवश कर देती है। छिप कर काम करना भी चोरी है । गुप्तरूप से तो मनुष्य वही काम करता है, जिस में नीति, धर्म आदि शुभ संकल्प नहीं होते। आसक्तिवश मनुष्य गुप्तरूप से दूसरों के धन या द्रव्य पर हाथ साफ करने का प्रयत्न करता है। इसीलिए सूत्रकार ने ऐसी गृद्धि रखने वाले या पराये धन या वस्तु पर आँख गड़ाए रखने वाले मनुष्य को चोरी करने वालों में गिनाया है।
__ अणभंजक-भग्गसंधिया—कर्ज न चुकाने वाले और अपनी की हुई संधि या प्रतिज्ञा को भंग करने वाले भी चोरों में शुमार हैं।
रायदुट्ठका-राजा या सरकार के कानूनों का उल्लंघन करके तस्करव्यापार