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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
२५५ से काटे गए या फाड़े गए हाथी आदि पशुओं या मनुष्यों के जमीन पर बहते हुए खून के कीचड़ से रास्ते लथपथ हो रहे हैं, (कुच्छि-दालिय-गलिय-रुलंत-निन्भेलितंतफुरुफुरंत-विगल-मम्माहय-विक्रय - गाढ दिन्नपहार-मुच्छित-रुलंत - बैंभल-विलाव-कलुणे) पेट फट जाने से भूमि पर लुढ़कती हुई एवं बाहर निकलती हुई आतों से खून बह रहा है ; एवं तड़फड़ाते हुए, व्याकुल, मर्मस्थान पर चोट खाए हुए, बुरी तरह से कटे हुए, भारी चोट खाने से बेहोश हुए एवं इधर-उधर लुढ़कते हुए विह्वल मनुष्यों के विलाप से जो युद्धभूमि करुण हो रही है, (हयजोह-भमंत-तुरग-उद्दाम-मत्त-कुंजर, परिसंकितजण-निव्वुक छिन्नधय-भग्गरहवर - नट्ठसिर - करिकलेवराकिन्न-पतितपहरण. विकिन्नाभरणभूमिभागे) जिस युद्ध में मारे गये योद्धाओं के भटकते हुए घोड़े, मतवाले हाथी और भयभीत मनुष्य, मूल से कटी हुई ध्वजाओं वाले टूटे हुए रथ, सिरकटे हाथियों के कलेवर, नष्ट हुए हथियार और बिखरे हुए गहने युद्धभूमि के एक हिस्से में पड़े हैं, (नच्चंतकबंध - पउर - भयंकर - वायस-परिलत-गिद्ध-मंडल-भमंतछायंधकारगंभीरे) नाचते हुए बहुत से धड़ों पर कौए और गिद्ध मंडरा रहे हैं। वे जब झुड के झुंड घूमते हैं तो उनकी छाया के अन्धकार से जो गंभीर हो रहा है, ऐसे (संगामंमि) युद्ध में (अतिवयंति) वे स्वयं प्रवेश करते हैं, केवल सेना को ही नहीं लड़ाते । (वसुवसुहाविकंपितव्व) देव (लोक) और पृथ्वी को मानो कंपाते हुए (परधणं महंता) पराये धन को चाहने वाले राजा लोग, (पच्चक्खपिउवणं) साक्षात् मरघट के समान, (परमरुद्दवीहणगं) अत्यन्त रौद्र होने के कारण भयावने, (दुप्पवेसतरगं) अत्यन्त कठिनाई से प्रवेश करने योग्य, (संगामसंकडं) संग्राम रूपी संकट में या गहन वन में (अभिवयंति) चल कर-आगे हो कर प्रवेश करते हैं।
(अवरे) दूसरे (पाइक्कचोरसंघा) पैदल चोरों के दल (य) और (सेणावति. चोरवंदपागड्ढिका) चोरों के दल के प्रवर्तक सेनापति, अडवीदेसदुग्गवासी) वन्यप्रदेशों के खोह, गुफा,बीहड़ आदि तथा जलीय एवं स्थलीय दुर्गम स्थानों में निवास करते हैं, (कालहरितरत्तपीतसुक्किल्लअणेगसचिधपट्टबद्धा) काले, हरे, लाल, पीले, सफेद आदि सैंकड़ों रंग बिरंगे चिह्नपट्ट-बिल्ले या चपरास बांधे हुए, (परविसए) दूसरे देशों-परदेशों पर (अभिहणंति) धावा बोल देते हैं, (किसके लिए ?) (लुद्धा) लुब्ध -लालची बन कर (धणस्स कज्जे) धन के लिए (रयणागरसागरं) रत्नों के खजाने वाले समुद्र पर (चढ़ाई करते हैं) (कैसा समुद्र ?) (उम्मीसहस्समालाउलाकुलवितोयपोतकलकलेंतकलियं) हजारों लहरों की मालाओं से व्याप्त तथा पेयजल के अभाव