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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान -आश्रव
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गंभीर और धुगधुग करती हुई आवाज जहाँ पर हो रही है, (पडिपहरुभंत - जक्खरक्खस- कुहंड- पिसाय-रुसिय-तज्जाय -उवसग्गसहस्ससंकुलं) जो प्रत्येक रास्ते में रुकावट डालने वाले यक्ष, राक्षस, कुष्माण्ड और पिशाचजातीय कुपित हुए व्यन्तरदेवों द्वारा जनित हजारों उपसर्गों से व्याप्त है ( बहुप्पाइयभूयं ) बहुत से उत्पातों - उपद्रवों से भरा हुआ है, (विरचितबलि होमधूवउवचार-दिन- रुधिर-च्चणाकरण- पयतजोगपययचरियं) जो बलि, होम और धूप दे कर की गई देवता की पूजा तथा रुधिर दे कर की हुई अर्चना करने में प्रयत्नशील सामुद्रिक व्यापार में रत जहाजी व्यापारियों से सेवित है, (परियंत - जुग्गंतकाल - कप्पोवमं) अन्तिम युग (कलिकाल ) के अन्त यानी प्रलयकाल के कल्प के तुल्य ( दुरंतं) जिसका अन्त पाना कठिन है, ( महानईनईव - महाभीम-दरिसणिज्जं ) गंगा आदि महानदियों का नदीपति (समुद्र), जो अति विकराल दिखाई देता है, ( दुरणुच्चरं ) जो कठिनाई से सेवित किया जा सकता है, ( विसमप्पवेसं ) नमकीन पानी से लबालब भरे होने से जिस में प्रवेश करना कठिन है; ( दुक्खुत्तारं ) जिसको पार करना बड़ा कठिन है, (दुरासयं) जिसका आश्रय लेना दुष्कर है, ( लवणसलिलपुण्णं) खारे पानी से परिपूर्ण, ( रयणागरसागरं) ऐसे रत्नों के आकर स्वरूप समुद्र में ( असिय- सिय- समूसियहि ) ऊँचे किए हुए काले और सफेद झंडों से युक्त (दच्छ- हत्थ तरकेहिं वाहणेहिं ) अतिशीघ्रगामी अथवा तेज पतवारों वाले जहाजों द्वारा (अइवइत्ता ) आक्रमण करके ( समुद्दमज्झे) समुद्र के मध्य में (गंतूण) जा कर ( जणस्स) सामुद्रिक व्यापारियों के ( पोते) जहाजों को ( हणंति) नष्ट करते हैं । ( परदव्वहरा) परद्रव्य का हरण करने वाले, (निरणुकंपा ) निर्दय, (निरवयक्खा) परलोक की परवाह न करने वाले ( धणसमिद्ध) धन से समृद्ध ( गामागर-नगर-खेडकब्बड-दोणमुह-पट्टणा-सम- णिगम जणवते - ) गाँवों, खानों, नगरों, खेड़ों ( धूल के कोट वाले छोटे गाँव), कर्बटों ( कस्बों), मडम्बों (चार योजन के अन्तर्गत गाँवों से घिरे हुए), पत्तनों (विशाल नगरों), द्रोणमुख (वंदरगाह के समीप का नगर जहाँ स्थलमार्ग और जलमार्ग दोनों हो), तापस आदि के आश्रमों, निगमों (व्यापारीमंडी), जनपदों देशों को ( हणंति) नष्ट कर देते हैं । (य) और वे (थिरहियया) मजबूत पक्के दिल वाले अथवा स्थिरहित यानी निहितस्वार्थी, (छिन्नलज्जा) निर्लज्ज लोग ( बंदिग्गा - गोहे) मनुष्यों को बंदी बना कर या गाय आदि को पकड़ कर ( गिव्हंति) ले जाते हैं । (दारुणमती) कठोर बुद्धि वाले, ( णिक्किवा) निर्दय अथवा ( णिक्किया) निकम्मे लोग (णियं ) अपना अथवा अपनों का ( हणंति) घात करते हैं (य) तथा (गेहसंधि ) घर
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