________________
तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
२६५
लगाते हैं, वे पराये धन से निवृत्त-विरक्त नहीं होते तथा दया-रहित बुद्धि वाले होते हैं, इसलिये देशवासी लोगों के घरों में रखे हुये धन, धान्य तथा अन्य द्रव्यसमूह को चुरा ले जाते हैं । इसी प्रकार कितने ही लोग चोरी की खोज में लगे रहते हैं । वे समय-कुसमय में घूमते हुए ऐसे श्मशान में जा कर आश्रय लेते है,जहां चिताओं में जलती हुई, रुधिरादि से लिप्त, अधजली या इधर उधर घिसटी हुई लाशें पड़ी हैं तथा खून से लथपथ मृत शरीरों को पूरा खाने और पी लेने के पश्चात् घूमती हुई डाकिनियों से अत्यन्त भयावना हो रहा है,जहाँ गीदड़ खीं खीं आवाज कर रहे हैं.उल्लू भयङ्कर आवाज कर रहे हैं.जो विद्र प वेतालों द्वारा ठहाका मार कर हंसने से अत्यन्त भयानक और अरमणीय हो रहा है,जो अत्यन्त दुर्गन्धित और घृणित होने से देखने में बड़ा भयावह है । तथा वे वन में सूने घरों तथा शिलाओं से बने हुये घरों में,मार्ग पर बनी हुई दूकानों,पर्वतों की गुफाओं, ऊबड़-खाबड़ जगहों एवं सिंह आदि हिंस्र जानवरों से व्याप्त जगहों में क्लेश पाते हुए भटकते हैं। उनके शरीर की खाल सर्दी और गर्मी से सूख या सिकुड़ जाती है, वह सूखी होकर कड़ी पड़ जाती है, या जल जाती है। जिनसे नरक और तिर्यंच की भवपरम्पराओं में सतत दुःखों को भोगना पड़े. ऐसे पापकर्मों का वे संचय करते हैं। उन्हें मोदक आदि भक्ष्य पदार्थों तथा चावल,गेहूँ आदि अनाजों एवं दूध आदि पदार्थों का मिलना दुर्लभ होता है । उन्हें चोरी के दुष्कर्म करते समय भूखे, प्यासे और थके हुए रहना होता है तथा मांस, मुर्दा शरीर, कंद, मूल या जो कुछ भी मिल जाय,उसी को खाकर रहना पड़ता है । वे रातदिन उद्विग्न (फड़फड़ाते) रहते हैं, वे एक जगह से दूसरी जगह दौडते-भागते रहते हैं, अथवा हर समय वे गुप्त खबरें पाने के लिये उत्सक रहते हैं, कहीं भी उन्हें टिकने को शरण नहीं मिलती, अतएव सैकड़ों साँ के कारण हर क्षण शंकाजनक अटवी में रहने के लिए विवश होते हैं। वे अपने कुल की बदनामी कराने वाले भयंकर चोर होते हैं, जो चोरी करने से पहले ऐसी गुप्त मंत्रणा करते हैं कि आज किसका धन चुराएं ? वे बहुत-से लोगों के कर्तव्य-कर्मों में विघ्न डालते हैं। वे नशे में चूर, असावधान, सोये, हुए, और विश्वस्त लोगों का मोका पा कर घात करते हैं । दुर्व्यसनों, आफतों
और उत्सव आदि खुशी के मौकों पर उनके दिमाग में चोरी की भावना जागती है। वे भेड़ियों की तरह अति क र रक्तपिपासू जैसे होकर सर्वत्र भटकते रहते हैं, वे राजा द्वारा बनाए हुए सरकारी कानूनों की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, वे सज्जन लोगों के द्वारा घृणा के पात्र हैं, अपने दुष्कर्मों