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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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(वा) अथवा ( दुक्कi) पाप ( दोसइ) दिखाई देता है, ( एवं ) इस प्रकार की सब चीजें ( जदिच्छाए ) अपने आप ही यदृच्छा से, (वा) अथवा (सहावेण वि ) स्वभाव से भी (वा) अथवा ( दइवतप्पभावओ वि) देव के प्रभाव से भी (भवति) होती है । ( एत्थ ) इस लोक में (किंचि) कोई (तत्त) तत्त्व - पदार्थ ( कयक ) किसी का किया बनाया हुआ ( नत्थि ) नहीं है, ( लक्खणविहाणं) वस्तु के लक्षणों और प्रकारों की ( कारिया ) करने-बनाने वाली (नियती ) नियति-भवितव्यता ( होनहार ) है । अथवा ( नियतीए कारियं) नियति ने ही बनाए हैं— कराए हैं ।] ( एवं ) इस प्रकार ( केई) कई (इरिससात गारवपरा ) ऋद्धिगौरव रसगौरव और साता गौरव में तत्पर ( बहवे ) बहुत से (धम्मकरणाला ) धर्माचरण करने में आलसी ( धम्मविमंसएण ) धर्मविचार की अपेक्षा से (मोi) मिथ्या (परूवेंति) प्ररूपण करते हैं । ( अवरे ) दुसरे ( अहम्मओ) अधर्म को स्वीकार करके, ( रायडुट्ठ) शासकविरुद्ध (अलियं अन्भक्खाणं ) झूठा दोषारोपण (ति) करते हैं, ( अचोरयं करें ) चोरी नहीं करने वाले को, (चोरोत्ति) यह चोर है, ऐसा (य) और (एमेव ) इसी प्रकार ( उदासीणं) प्रपञ्चों से उदासीन, लड़ाईझगड़ों से दूर तटस्थ व्यक्ति को, (डामरिउ त्ति) यह लड़ाई करने वाला है, ऐसा (य) तथा ( सीलकलियं ) शीलसम्पन्न परस्त्रीत्यागी को ( दुस्सोलोत्ति) दुःशील है, इसलिए ( परदारं गच्छतित्ति) परस्त्रीगमन करता है, इस तरह, ( मइलंति ) दूषित करते हैं, बदनाम करते हैं, ( अयं ) यह ( गुरुतप्पओ वि) गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखने वाला भी है, इस तरह दोष लगाते हैं । ( अण्णे) दूसरे लोग (एमेव ) यों हो व्यर्थ ही ( उवाहणंता) उसकी आजीविका, कीर्ति आदि नष्ट करते हुए (भणंति) कहते हैं कि ये (मित्तलत्ता ) मित्र की पत्नियों का ( सेवंति ) सेवन करते हैं । इतना ही नहीं, (अ) यह ( लुत्तधम्मो ) धर्मशून्य भी है, (इमो ) यह ( विस्संभघायओ) विश्वासघाती है, (पावकम्मकारी ) पापकर्म करने वाला, ( अकम्मकारी) न करने योग्य कामों को करने वाला है, (अगम्मगामी) भगिनी, पुत्री, पुत्रवधू आदि अगम्य के साथ गमन -- सहवास करने वाला है (य) और ( अयं ) यह ( बहुए पापगेसु) बहुत से पापों से, ( जुत्तोत्ति) युक्त है, ( एवं ) इस ईष्यालु व्यक्ति ( जंपंति) बकते हैं । ( भद्दके) भद्र ( भोले ) स्वभाव वाले मनुष्य के ( गुणत्तिने पर लोग निष्पिवासा) गुण, कीर्ति, स्नेह व परभव की कोई परवाह न करने वाले (ते) वे असत्यवादी ( अलियवयणदच्छा) असत्य बोलने में चतुर, (परदोसुपायणपसत्ता) दूसरो में दोषों को बताने में जुटे (मुहरी ) अपने हुए मुख को अपना दुश्मन बनाये हुए, (असमिक्खियप्पलावा) बिना विचारे सहसा बोल देने वाले ( एवं ) इस प्रकार से, (अक्खति बीएण) अक्षयदुःख के बीजरूप कम्मबंधणेण ) कर्मबन्धन से (अप्पा) अपनी आत्मा को, (वेढेंति) लपेट लेते हैं- जकड़ लेते हैं । ( परस्स अत्यंमि )
(
दुरप्पा ) दुरात्मा
प्रकार ( मच्छरी )