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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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(दुज्जंतु ) उखाड़ लो,
पेड़ों को (भिज्जं तु ) काट डालो, (य) और (उच्छू) गन्नों को (य) एवं (तिला) तिलों को ( पीलिज्जंतु) घानी में पीर डालो। (य) तथा (मम) मेरे ( घरट्ट्याए ) घर के लिए ( इट्टकाओ) ईटें (पया वेह) पकवा लो, ( खेत्ताइं ) खेतों को (कसह ) जोतो, (य) और, ( कसावेह) जुतवाओ, (अडवीदेसेसु) जंगलप्रदेशों में ( विउसीमे ) विशाल सीमा वाले, ( गाम-नगर- खेड - कव्वडे ) गाँव, नगर, खेड़े (छोटे गाँव) कब्बड - कस्बे ( लहु ) झटपट, (निवेसेह) बसाओ, अर्थात् इन्हें मनुष्यों के रहने लायक बस्ती में बदल डालो। (द) और (कालपत्ताइं ) पके हुए या खिले हुए (पुष्फाणि) फूल फलाणि) फल (य) और ( कंदमूलाई ) कंदमूलों को (गेव्हह ) ग्रहण कर लो, (परिजण ट्ठयाए) सगे-सम्बन्धियों के लिए, ( संचय) इन्हें इकट्ठे (करेह) कर लो । (य) और ( साली ) धान, ( बीही) गेहूं आदि अनाज (य) और ( जवा) जौ ( लुच्चंतु) काट लिये जायें, (मलिज्जंतु) क्यारों में इन्हें मर्दन किये जायँ, (य) और (उप्पणिज्जंतु) साफ किये जायें, (य) और ( लहुं) जल्दी ( कोट्ठागारं ) कोठार- कोठे में, ( पविसंतु) भर दिये जायँ, (य) तथा ( अप्पमहउक्कोसगा) छोटे, मझले और बड़े ( पोयसत्था ) जहाजों के सार्थवाह या शिशुसमूह (हंमंतु) मार दिये जांय | (य) तथा ( सेणा सेना ( णिज्जाउ) कूच करे, चढाई करने निकले, (डमरं ) कलह (जाउ) पैदा हो, (घोरा) भयंकर, ( संगामा ) युद्ध ( वट्टंतु ) होने दो (य) और (सगडवाहणाई ) गाडी, रथ आदि सवारियाँ ( पवहंतु ) बढ़ाओ या खूब चलाओ, ( उवणवणं) उपनयन – यज्ञोपवीत संस्कार, (चोलगं ) चूडाकर्म ( चोटी रखने का ) संस्कार -- मुंडन संस्कार (विवाहो) विवाह, (जन्नो) यज्ञ ( अमुगम्मि) अमुक ( दिवसेसु) दिनों में, ( करणे ) करणों में, ( मुहुत्तेसु) मुहूत्तों में, (नक्खत्त सु) नक्षत्रों में (य और ( ति हिसु) तिथियों में ( होउ ) हो । (य) और (अज्ज) आज ( मुदितं ) आमोद-प्रमोदपूर्वक (बहुखज्जपिज्जकलियं बहुत-सी मिठाइयाँ आदि खाने एवं पीने के पदार्थों से युक्त अथवा प्रचुर मद्य, मांस आदि सहित (हवणं) सौभाग्य तथा पुत्र आदि के लिए वधू आदि का स्नान तथा ( कौतुकं ) डोरा बांधना, राख की पोटली आदि न्योछावर करना आदि विधिवाला कौतुक ( होउ ) हो । (य) तथा (ससिरविगहोवरागविसमेमु ) चन्द्र और सूर्य के ग्रहण तथा दुःस्वप्न आदि के होने पर ( विण्हावणकं) विविध मंत्रादि से संस्कारित जल से स्नान तथा (संतिकम्माणि ) शान्तिकर्म ( कुणह) करो (य) तथा ( सजणपरियणस्स) कुटुम्बीजन और सगे-सम्बन्धियों की (य) तथा ( नियकस्स जी.व - यस्य) अपने जीवन की ( परिरक्खणट्ठयाए) सुरक्षा के लिए ( पडिसीसकाई ) अपने सिर के प्रतीक आटे आदि के बने हुए सिर (देह) चण्डी आदि देवियों को भेंट चढ़ाओ (च) और (विविहोस हिमज्जमंसभक्खन्नपाणामल्लाणुलेवण-पईवजलि उज्जल सुगंधिधूवावकार फफल-समिद्ध ) अनेक प्रकार की वनस्पतियों, मद्य, मांस, मिठाइयों ( भक्ष्य), अन्न, पान, पुष्पमाला, चंदनादि लेपन, उवटन आदि, तथा दीपक जलाने,