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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र वञ्चनाक्षेपणघातनपरानिभृतपरिणामतस्करजनबहुमतमकरुणं राजपुरुषरक्षितं सदा साधुगर्हणीयं प्रियजन-मित्रजनभेदविप्रीतिकारकम् रागद्वेषबहुलं पुनश्चोत्पूरसमरसंग्रामडमरकलिकलहवेधकरणं दुर्गतिविनिपातवर्द्धनं भवपुनर्भवकरं चिरपरिचितमनुगतं दुरन्तं तृतीयमधर्मद्वारम् ॥ सू०६ ॥
पदार्थान्वय—सुधर्मास्वामी कहते हैं- (जंबू !) हे जम्बू ! (तइयं च) तीसरा (अदिण्णादानं) अदत्तादान–चोरी (हर-दह-मरण-भय-कलुस-तासण-परसंतिगऽभिज्जलोभमूलं) हरण, दाह, मृत्यु और भयरूप है, मलिन है, त्रास पैदा करने वाला है, परधन में रौद्रध्यानयुक्त मूर्छा-लोभ इसका मूल है, (कालविसमसंसियं) आधीरात आदि काल और पर्वत आदि विषम स्थान का आश्रय लेने वाला है, (अहोच्छिन्नतण्हपत्थाणपत्थोइमइयं) जिसमें लगातार तृष्णातुर जीवों को अधोगति में प्रस्थान . करने में प्रवृत्त करने वाली बुद्धि है, (अकित्तिकरणं) अपयश का जनक, (अणज्ज) आर्यपुरुषों द्वारा अनाचरणीय, (छिद्दमंतर-विधुर-वसण-मग्गण-उस्सव-मत्त-पमत्त-पसुत्तवंचण-क्खिवण-घायण-पराणिहुय - परिणाम - तक्करजणबहुमयं) छिद्र, अवसर, विधुरअपाय, व्यसन-राजा आदि द्वारा ढहाई हुई आफत का अन्वेषण करने वाला तथा उत्सवों में शराब आदि के नशे में चूर, असावधान तथा सोये हुए मनुष्यों को ठगने वाला, चित्त में व्याकुलता पैदा करने और घात करने में तत्पर, तथा अशान्तचंचल परिणामवाले चोर लोगों द्वारा अत्यन्त मान्य है, (अकलुणं) करुणारहित कर्म है, (राजपुरिसरक्खियं) चौकीदार, कोतवाल आदि राजपुरुषों द्वारा निवारित है, (सया साहुगरहणिज्ज) सदा साधुओं द्वारा निन्दित, (पियजणमित्तजणभेदविप्पीतिकारक) प्रियजनों एवं मित्रजनों में परस्पर फूट और अप्रीति-दुश्मनी पैदा करने वाला, (रागदोसबहुलं) रागद्वेष से ओतप्रोत है । (पुणो य) और फिर यह (उप्पूरसमर-संगाम-उमर-कलि-कलह-वेहकरणं) बहुतायत से मनुष्यों को मारने वाले संग्रामों, स्वचक्र - परचक्र में उमरों-विप्लवों, लड़ाई-झगड़ों-वाक्कलहों और पश्चात्ताप का कारण है, (दुग्गइविणिवायवड्ढणं) दुर्गतिपतन में वृद्धि करने वाला, (भवपुणब्भवकर) संसार में बारबार जन्म कराने वाला, (चिरपरिचितं) चिरकाल से परिचित, (अणुगयं) निरन्तर आत्मा के साथ लगा हुआ, (य) और (दुरंतं) परिणाम में दुःखप्रद यह (तइयं) तीसरा (अधम्मदारं) अधर्मद्वार है। - मूलार्थ—सुधर्मास्वामी अपने शिष्य श्री जम्बूस्वामी से कहते हैं हे जम्बू! तीसरा अदत्तादान (बिना दी हुई या बिना अनुमति के किसी की पराई वस्तु का लेना) हरणरूप है व चित्त को जलाने वाला है, मृत्यु और भयरूप है; पापों