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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान आश्रव
अदत्तादान का स्वरूप
असत्य आश्रव का वर्णन करने के पश्चात् अब शास्त्रकार तीसरे आश्रव अदत्तादान का इस तृतीय अधर्मद्वार में वर्णन करते हैं। क्योंकि अदत्तादान (चोरी) और असत्य का परस्पर गाढ सम्बन्ध है । चोरी करने वाले प्रायः झूठ बोला करते हैं । अतः अब यहाँ अदत्तादान — चोरी का निरूपण करते हुए सर्वप्रथम अदत्तादान के स्वरूप का निरूपण करते हैं ।
मूलपाठ
जंबू ! तइथं च अदिण्णादाणं हरदहमरणभयकलुसतासणपरसंतिगऽभिज्जलोभमूलं, कालविसमसंसियं, अहोऽच्छिन्नतहपत्थाणपत्योइमइयं, अकित्तिकरणं, अणज्जं, छिद्दमंतर-विधुर-वसणमग्गण-उत्सव-मत्तप्पमत्त पसुत्तवंचण विखवणघायणपराणिहुयपरिणाम-तक्करजण बहुमयं, अकलुणरायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण मित्तजरण-भेदविप्पीतिकारकं रागदोसबहुलं, पुणो य उप्परसमर संगामडमरकलि-कल हवेहकरणं, दुग्गइविणिवायवड्ढणं, भवपुणब्भवकरं चिरपरिचितमणुगयं दुरंतं तइयं अधम्मदारं ॥ सू० ६ ॥
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संस्कृतच्छाया
जम्बू ! तृतीयं च अदत्तादानं हर दह-मरण-भय- कलुष-त्रासन-परसत्काभिध्यालोभमूलं कालविषमसंश्रितमधोऽच्छिन्नतृष्णाप्रस्थानप्रस्तोत्रीमतिकमकीर्तिकरणमनार्यम् छिद्रान्तरविधुरव्यसनमार्गणोत्सवमत्त प्रमत्तप्रसुप्त
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