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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पदार्थान्वय-(तस्स य) उस अदत्तादान के, (गोण्णाणि) गुणनिष्पन्न सार्थक, (तीसं) तीस, (नामाणि) नाम, (होंति) हैं। (तंजहा) वे इस प्रकार हैं(चोरिक्क) चोरी, (परहडं) दूसरे से छीनना, (अदत्त) बिना दिये दूसरे की चीज लेना, (कूरिकडं) क्रूर व्यक्तियों का कृत्य, (परलाभो) पराये धनादि का लाभ, (असंजमो) असंयम (परधणम्मि गेही) दूसरों के धन पर गृद्धि-आसक्ति, (लोलिक्कं) दूसरे की वस्तु को लम्पटता, (तक्करत्तणं) लुटेरों का काम या तस्करता, (इति च) और (अवहारो) वस्तु का अपहरण, (हत्थलहुत्तणं) दूसरों की चीज उड़ाने में हाथ की सफाई, (पावकम्मकरणं) पापकर्मों का कारण, (तेणिक्क) चोरों का कार्य, (हरणविप्पणासो) दूसरे के धनादि का हरण करके भाग जाना, (आदियणा) दूसरे के धन का ग्रहण करना, (लुपणा धणाणं) दूसरे की संपत्तियों को गायब करना, (अप्पच्चओ) अप्रतीतिकारक, (अवीलो) दूसरों को पीड़ारूप, (अक्खेवो) दूसरे के द्रव्य पर झपटना, (खेवो) दूसरे के हाथ से द्रव्य छीनना, (विक्खेवो) दूसरे के हाथ से द्रव्य ले कर इधरउधर कर देना, (कूडया) झूठा तौल-नाप करना या झूठा व्यवहार या जालसाजी (कुलमसी य) और कुल पर कलंक या कालिमा लगाना, (कंखा) परद्रव्य की अभिलाषा, (य)
और (लालप्पणपत्थणा) लल्लोचप्पो करके दीन शब्दों में याचना करना, (आससणाय वसणं) विनाश के लिए व्यसन, (इच्छा-मुच्छा) परधन की चाह और अत्यंत आसक्ति, (तण्हागेहि) प्राप्त द्रव्य को खर्च न करने की इच्छा तथा अप्राप्त द्रव्य को प्राप्त करने की लालसा, (नियडिकम्म) छलकपटपूर्वक कर्म (य) और (अपरच्छंति वि) परोक्ष में किया जाने वाला कार्य । इस प्रकार पावकलिकलुसकम्मबहुलस्स) पापकर्म
और कलह से होने वाले मलिन कामों से ओतप्रोत, (अदिण्णादाणस्स) अदत्तादान के (एयाणि) ये (तीसं) तीस नाम और (एवमादीणि) ऐसे और भी (अणेगाई) अनेक (नामधेज्जाणि) नाम (होति) हैं।
मूलार्थ-जिसके स्वरूप का वर्णन किया गया है, उस अदत्तादान (चोरी) के ये गुणनिष्पन्न सार्थक तीस नाम हैं। वे इस प्रकार हैं-१ चोरी, २-दूसरे से वस्तु को छीन लेना, ३ बिना दिये दूसरे की वस्तु ले लेना, ४-क्रूर मनुष्यों का कार्य, ५-दूसरों के धन से अनुचित लाभ उठाना, ६-हाथ-पैर व मन आदि का असंयम, ७–पराये धन में गृद्धि रखना, ८-दूसरों के द्रव्य में मन का चलायमान होना, ६-लुटेरों का काम, १०-वस्तु का अपहरण, ११-दूसरे की वस्तु को उड़ाने में हाथ की सफाई, १२-पापकर्मों का कारण, १३-चोरों का काम, १४ दूसरों का धनादि