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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
है। इसलिए वे दोनों एक नहीं हैं; बल्कि भिन्न-भिन्न पदार्थ हैं । जल में स्वच्छता के कारण किसी भी वस्तु के प्रतिबिम्ब के रूप में परिणत होने की योग्यता है। वह अपने सामने जिस वस्तु को पाता है, तद्रूप प्रतिबिम्ब को ग्रहण कर लेता है । इसलिए यह मानना नितान्त असत्य और प्रमाणबाधित है कि वही आकाशवर्ती चन्द्र जलपात्रों में अनेकरूप दिखाई देता है। ... एकब्रह्मवाद की असत्यता-वेदान्तदर्शन का कहना है कि जगत् में केवल एक ही ब्रह्म है; इसके सिवाय और कोई पदार्थ नहीं हैं। हमें ये जो भेद दिखाई दे रहे हैं, वे सब उस (ब्रह्म) के विवर्त (पर्याय) हैं । कहा भी है
सर्वं खल्विदं ब्रह्म, नेह नानास्ति किंचन । ___आरामं तस्य पश्यन्ति न तत् पश्यति कश्चन ।।
अर्थात्- 'जो कुछ भी वस्तुसमूह हमें दृष्टिगोचर हो रहा है, वह सब ब्रह्मरूप ही है। इस जगत् में ब्रह्म से भिन्न अन्य कोई चीज नहीं है । लोग प्रायः उस (ब्रह्म) के आरामों (पर्यायों) को देखते हैं, उस शुद्ध ब्रह्म को कोई नहीं देखता।'
_ 'विश्व में जो घट, वस्त्र, मकान, हम, तुम आदि नाना भेदों का प्रतिभास हो रहा है, उसका कारण अनादिकाल से आत्मा के साथ लगी हुई माया है । उस माया (अविद्या) हो ने आत्मा को ब्रह्मज्ञान से वंचित करके इन झूठे पदार्थों की कल्पना के चक्कर में डाल दिया है। माया का पर्दा आत्मा को शुद्ध ब्रह्म का ज्ञान नहीं होने देता । जब यह आत्मा माया का पर्दा हटा कर उस ब्रह्म के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर लेता है; तब माया का भ्रमजाल हट जाने से 'अहं ब्रह्माऽस्मि' (मैं ही ब्रह्म हूं) इस भावना में मग्न हो कर ध्यान की पराकाष्ठा को पहुंच जाता है,यानी ब्रह्म में लीन हो जाता है । ब्रह्मस्वरूप हो जाता है, ब्रह्म की सत्ता में मिल जाता है। उसकी सत्ता फिर अलग नहीं रहती । जैसे छोटे दीपक का प्रकाश बड़े दीपक के प्रकाश में मिल जाता है, इसी तरह ब्रह्मज्योति में आत्मज्योति मिल जाती है।' ..
उपर्युक्त सारा कथन प्रमाण और युक्तियों से बाधित है। वेदान्त का यह कथन भी असत्य है कि ये नाना भेद माया (अविद्या) के कारण प्रतीत होते हैं। प्रश्न होता है कि माया कोई वस्तु है या अवस्तु ? यदि माया कोई वस्तु है, तब तो माया
और ब्रह्म ये दो तत्त्व हो गए, वेदान्त का अद्वैत खण्डित हो गया, द्वैत की सिद्धि हो गई । यदि कहें कि माया अवस्तु है, तब तो वह भेदज्ञानरूप कार्य कैसे कर सकेगी ? गधे के सींग के समान अवस्तु होने के कारण माया कुछ भी करने में समर्थ न हो सकेगी।
यदि घट, पट आदि पदार्थों का ज्ञान मिथ्या होता तो वह किसी अन्य प्रमाण