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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
२२१ पामरों और नीचों की संगति करने वाले अथवा नीचों की सेवा में रहने वाले, (लोकगरहणिज्जा) लोक में निन्दनीय, (भिच्चा) चाकर, (असरिसजणस्स पेस्सा) असमानविषम आचार-विचार वाले, अशिष्ट लोगों के आज्ञापालक, अथवा द्वष के पात्र (दुम्मेहा) दुर्बुद्धि, (लोकवेद - अज्झप्प - समयसुतिवज्जिया) लौकिक शास्त्र महाभारत रामायण आदि, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद आदि वेद, आध्यात्मिक शास्त्र-योगशास्त्र, कर्म-ग्रन्थ आदि तथा जैन-बौद्ध आदि आगमों या सिद्धान्तों के श्रवण या ज्ञान से रहित, (धम्मबुद्धिवियला) धार्मिक बुद्धि से शून्य (दीसंति) दिखाई देते हैं। (य) और (तेण असंतएण अलिएण) उस अनुपशान्त या अशुभ असत्यवादजनित कर्माग्नि से कालान्तर में (पडज्झमाणा) जलते हुए (अवमाणणपिट्ठिमंसाहिक्खेव - पिसुण - भेयण - गुरुबंधव - सयणमित्तवक्खारणादियाइं) अपमान, पीठ पीछे निन्दा, धिक्कार, चुगली, आपस में फूट या प्रेमसम्बन्धों का भंग, गुरुजनों, स्नेहीजनों, सम्बन्धीजनों तथा मित्रजनों के तीखे वचनों से अनादर आदि से युक्त, (अमणोरमाइ) अमनोहर, (हिययमणदूमकाई) हृदय और मन को संताप देने वाले, (जावज्जीव) जीवनपर्यन्त (दुरुद्धराणि) मुश्किल से मिटने वाले, (बहुविहाई) अनेक प्रकार के, (अब्भक्खाणाई) मिथ्या दोषारोपणों को (पाति) पाते हैं । और (अनिट्ठखरफरुसवयण - तज्जण - निब्भच्छण-दीणवदणविमणा) अरुचिकरअप्रिय, तीखे, कठोर और मर्मभेदी वचनों से डांटडपट, झिड़कियों और धिक्कारतिरस्कार द्वारा दीनमुख और खिन्न चित्त वाले, अतएव (कुभोयणा) खराब भोजन पाने वाले, (कुवाससा) मैलेकुचले व फटे वस्त्र वाले, (कुवसहीसु किलिस्संता) खराब बस्ती में क्लेश पाते हुए (अच्चंतविपुलदुक्खसयसंपलि (उ) ता) अत्यन्त विपुल सेंकड़ों दुःखों से युक्त या प्रज्वलित (नेव) न तो (सुखं) शारीरिक सुख (उवलभंति) पाते हैं (य) और (नेव) न ही (निव्वुइं) मानसिक शान्ति पाते हैं।
(एसो) यह (सो) पूर्वोक्त (अलियवयणस्स) असत्य बोलने का (फलविवागो) फलभोग, (इहलोइओ) इस लोकसम्बन्धी (परलोइओ) परलोक सम्बन्धी (अप्पसुहो) अल्पसुख वाला अर्थात् सुख रहित, (बहुदुक्खो) बहुत दुःखों से युक्त (महब्भओ) महाभयानक, (बहरयप्पगाढ़ो) बहुत कर्मरज के कारण आत्मा के साथ गाढ़रूप से सम्बद्ध, (दारुणो) तीक्ष्ण, (कक्कसो) कर्कश-कठोर, (असाओ) असाता पैदा करने वाला, (वाससहस्सेहि) हजारों वर्षों में, (मुच्चइ) छूटता है । (य) तथा (अवेदयित्ता) बिना भोगे (हु) निश्चय हो, (मोक्खो नत्थि) छुटकारा नहीं होता । (एवं) इस प्रकार (नायकुलनंदणो) ज्ञातकुल में उत्पन्न (महप्पा) महात्मा, (वीरवरनामधेज्जो) महावीर नाम के (जिणो उ) जिने- .