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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र योनियों का पुनः विस्तार से वर्णन नहीं किया ; इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि असत्य की सजा हिंसा से कम है या हलकी है। हाँ, यह ठीक है कि हिंसा की भयंकरता तो प्रत्यक्ष दिखाई देती है, उससे प्राणी के प्राणों का नाश कर दिया जाता है और सृष्टि के समस्त प्राणियों पर प्राणवध की निर्दयता, क्रूरता और भयंकरता का प्रभाव सीधा पड़ता है। असत्य का प्रभाव दूसरे प्राणियों पर उतना सीधा नहीं पड़ता; प्राणियों को मारने, काटने और सताने का उपदेश, शिक्षा या प्रेरणा देने पर ही पड़ता है। फिर भी असत्य कम भयंकर नहीं है। उपदेशादि के रूप में प्राणियों के होने वाले अहित के रूप में असत्यवचन का प्रयोग भी एक प्रकार की वाचिक हिंसा है, जिसकी परम्परा दीर्घकाल तक चलती है । इसलिए उसका कुफल भी नरक-तिर्यञ्चयोनि में बार-बार जन्ममरण करके भोगना पड़ता है।
मनुष्यगति में असत्यभाषण की सजा- यह तो निर्विवाद है कि नरकगति और तिर्यञ्चगति में असत्यभाषण की भयंकर सजा दीर्घकाल तक विविध योनियों में भटकने के रूप में काट लेने के बाद उनमें से कई जीवों को सौभाग्य से मनुष्यगति की भी प्राप्ति होती है, किन्तु मनुष्यगति में भी उनकी हालत बुरी से बुरी होती है। मनुष्यगति में वे किस प्रकार की बदतर हालत में होते हैं, इसका स्पष्ट निरूपण करते हुए शास्त्रकार स्वयं कहते हैं-'ते य दिसंति दुग्गया ... नरा धम्मबुद्धिवियला;"....."अच्चंतविपुलदुक्खसयसंपउत्ता।" इसका अर्थ हम मूलार्थ में स्पष्ट कर आये है; इसलिये उसे दुबारा न कह कर, हम इस पर थोड़ा-सा विश्लेषण कर देते हैं।
मनुष्य को शारीरिक दण्ड की अपेक्षा मानसिक दण्ड असह्य और नरक की यातना से भी भयंकर लगता है। मनुष्य को साधनहीन, दरिद्र, कमजोर और अपाहिज या रुग्ण हो जाने पर पद-पद पर ठोकरें खानी पड़ती हों, जगह-जगह अपमान के कड़वे घूट पीने पड़ते हों, चारों ओर से निन्दा, झिड़कियों और आक्षेपों के वाक्यवाणों का सतत प्रहार सहना पड़ता हो, बार-बार तुच्छ और गंदे शब्दों में गालियां, भर्त्सना, अपशब्द एवं डाँटडपट की बौछारें झेलनी पड़ती हों, कल्पना कीजिए, कितनी भयंकर सजा है वह ? कितनी दर्दनाक स्थिति है मनुष्य की वह ? सुनने और विचार करने मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते है ! असत्यभाषण या मषावाद की यह मानसिक सजा कितनी भयंकर है और उसका कितना सजीव चित्र उपस्थित किया है शास्त्रकार ने !
अगर शास्त्रकार इस प्रकार से असत्यभाषण के फल-स्वरूप मिलने वाले दंड का वर्णन न करते तो भी हम प्रत्यक्ष कई बार अनुभव करते हैं कि झूठे आदमी का कोई विश्वास नहीं करता, उसे कोई नौकर नहीं रखता, उसके साथ लेनदेन का कोई व्यवहार नहीं करना चाहता; सरकार को उसकी जालसाजी का पता लगने पर उसे सख्त