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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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जीवन के मूल सत्य सिद्धान्तों का अपलाप करके लोगों को लुभावनी और इन्द्रियविषय की मृगमरीचिका के जाल में फंसने को प्रेरित किया है, सद्धर्म की राह से भटका कर अधर्म और पाप के रास्ते बताए हैं, धर्म की ओट में वंचना करके जिन्होंने दूसरों से बढ़िया भोजन, उत्तम वस्त्र और आलीशान महल पाए हैं; ऐसे लोगों को इस जन्म में भी प्रायः शुद्ध धर्म का बोध नहीं मिलता; वे लौकिक, व्यावहारिक, आध्यात्मिक और धार्मिक शास्त्रों के ज्ञान से वञ्चित रहते हैं, दर्शनशास्त्र और अध्यात्म के श्रवण से भी वे दूर रहते हैं, उन्हें सभ्य और सुसंस्कृत लोगों के सहवास के बदले गंवार और असंस्कारी लोगों का सहवास मिलता है, धार्मिकजनों के सत्संग के बदले पापीजनों का कुसंग प्राप्त होता है, इन्द्रियों के विषयसुखों के उपभोग से वे प्रायः वंचित ही रहते हैं, अध्यात्म चेतना के बदले उनमें जड़ता, मूढ़ता, मिथ्यादृष्टि आदि का ही दुर्भाव देखने को मिलता है । अच्छे भोजन, वस्त्र और निवास के बदले रद्दी से रद्दी भोजन, फटे-पुराने वस्त्र और गन्दे से गन्दे निवासस्थान उन्हें मिलते हैं । जिन्होंने दूसरों के सच्चे सिद्धान्तों या सच्ची मान्यताओं का खण्डन किया है, स्वर्गादि का मिथ्या आश्वासन दे कर दूसरों को छला है, उन्हें इस जन्म में वैसी ही दुःस्थिति प्राप्त होती है, वाणी भी उन्हें निस्तेज, प्रभावहीन, निष्फल, अस्पष्ट और कौए के समान कर्कशस्वर वाली, धीमी और फटी हुई आवाज वाली मिलती है, वे भी बार-बार छले और सताए जाते हैं । जिन्होंने दूसरों को बहका कर आपस में लड़ाया - भिड़ाया है, सिर फुड़ाया है, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, या अन्य बातों के नाम पर मनुष्य- मनुष्य में भेद डाले हैं, घृणा पैदा की है, सच्चे देव, गुरु, धर्म और शास्त्रों की झूठी निन्दा की है; उनका हाल भी यहां प्रायः वैसा ही होता है । मित्र, परिवार, गुरुजन और बन्धु-बांधव सभी उन्हें नफरत की निगाहों से देखते हैं; उनके प्रति • उनका स्नेह जरा भी नहीं होता; आपस में कलह-क्लेश के कारण वे सदा उद्विग्न और खिन्न रहते हैं, जनता में घृणा और निन्दा के पात्र बनते हैं, जगह-जगह उन्हें • अपमान, धिक्कार और मार सहनी पड़ती है, पद-पद पर उन्हें लताड़ा जाता है, डांटाफटकारा जाता है । जिन्होंने अपनी पहली जिंदगी में झूठे तौल नाप किए हैं, लोगों को व्यवसाय में धोखा दिया है, चोरी और लूट की है; उन्हें इस जीवन में भी प्रायः दरिद्रता साधनहीनता तथा पद-पद पर निर्धनता के कारण यातना, अवमानना और उपेक्षा बदले में मिलती है । या धन आदि सुख के साधन भी उनके लिए क्लेश, कलह, रोग, शोक आदि के कारण दुःख के साधन बन जाते हैं। अपनी वैद्यक, ज्योतिष या अन्य जीविका चलाने के लिए जिन्होंने असत्य बोल कर लोगों को धोखा दिया है. पैसा बटोरा है; उन्हें इस लोक में रोग, शोक, दुःख, दारिद्र्य, घिनौना रूप, बेडौल और दुर्गन्धित शरीर व अंगोपांग मिलते हैं ।
मतलब यह है कि असत्यवचन की क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में उन सबको