________________
२२३:
द्वितीय अध्ययन मृषावाद-आश्रव
अस्पष्ट एवं निष्फल होती है । वे संस्काररहित ( गंवार ) और सत्कारहीन होते हैं, उन्हें सुसंस्कृत भाषा, सभ्यता और संस्कृति नहीं मिलती । उनके मुंह शरीर आदि से बदबू निकलती है, उनमें कोई विशेष चेतना (बोध) नहीं होती। वे अभागे, दरिद्र और लावण्यहीन होते हैं । उनका स्वर कौए के समान कर्कश होता है, उनकी आवाज धीमी ( प्रभावहीन) और फटी होती है, उन्हें विभिन्न लोगों द्वारा सताया जाता है, वे मूर्ख, बहरे, अन्धे, गू गे और तोतले होते हैं, वे स्पष्ट उच्चारण नहीं कर सकते, उनकी इन्द्रियाँ असुन्दर और विकृत होती हैं, वे जाति, कुल, गोत्र एवं कामों से नीच होते हैं और नीचों की संगति करते हैं या नीच लोगों की सेवा में रहते हैं, जगत् में वे निन्दा के पात्र होते हैं, वे चाकर व विषम आचार विचार वाले अशिष्ट लोगों के आज्ञापालक हजूरिये बनते हैं; या उनके द्वेषपात्र बनते हैं, वे दुर्बुद्धि होते हैं, लौकिक शास्त्र महाभारत रामायण आदि, ऋग्वेद, सामवेद यजुर्वेद आदि वेद, योगशास्त्र, कर्म - ग्रन्थ, जीवविचार आदि अध्यात्मशास्त्रों एवं जैन-बौद्ध आदि आगमों या सिद्धान्तों के बोध या श्रवण से रहित होते हैं, अतएव धर्मज्ञान से या धार्मिक बुद्धि से हीन दिखाई देते हैं ।
कालान्तर में उस (पूर्वोक्त) अनुपशान्त या अशुभ असत्यवादजनित कर्मरूप अग्नि से जलते हुए वे मनुष्य तरह-तरह से अपमानित होते हैं, उनकी पीठ पीछे निन्दा होती है, उन्हें बार-बार झिड़का जाता है, उनकी चुगली की जाती है, उनमें आपस में फूट हो जाती है या उनके साथ प्रेमसम्बन्ध तोड़ दिया जाता है, उन्हें गुरुजनों, स्नेहीजनों, सम्बन्धियों और मित्रों के तीखे, मर्मस्पर्शी व कड़वे वचन सुनने पड़ते हैं, ये और इस प्रकार के और भी मन को नहीं सुहाने वाले, हृदय और चित्त को चुभने वाले, जिंदगीभर मन को कचोटने वाले, बड़ी मुश्किल से दिल-दिमाग से निकलने वाले नाना प्रकार के दोषारोपण वे पाते हैं । अरुचिकर, तीखे कठोर और मर्मभेदी चुभते वचनों से डांटडपट भिड़कियों और धिक्कार- तिरस्कारों को पा कर उनका मुंह दीन और चित्त सदा खिन्न रहता है। इसी तरह उन्हें खराब भोजन मिलता है, फटे-पुराने, मैले कुचैले कपड़े पहनने को मिलते हैं, रहने के लिए निकम्मी बस्ती मिलती है, जहाँ वे क्लेश पाते हैं, अत्यन्त विपुल सैकड़ों दुःखों से वे व्यथित रहते हैं । न उन्हें शारीरिक सुख मिलता है और न मानसिक शान्ति ही मिलती है ।
इस प्रकार पूर्वोक्त असत्यकथन का फलभोग इस लोक और परलोक