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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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प्रोत्साहन देने वाली कथाओं या बातों में ही खुश रहने वाले ये असत्यवादी जन मन, वचन, काया के द्वारा अनेक प्रकार से असत्याचरण करने में संतुष्ट रहते हैं । असत्य के कटुफल
असत्य बोलने वालों और असत्य बोलने के विविध कारणों का स्पष्ट उल्लेख - करने के बाद शास्त्रकार अब असत्य के कटुफलों का निरूपण करते हैं
मूलपाठ तस् य अलियस फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खसंकडं नरयतिरियजोणि, तेण य अलिएण समणुबद्धा आइद्धा पुणन्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गतिवसहिमुवगया, ते य दिसंति ह दुग्गया, दुरंता, पर'वस्सा अत्थभोगपरिवज्जिया, असुहिता, फुडियच्छविबीभच्छविवन्ना, खरफरुसविरत्तज्झामज्झसिरा, निच्छाया, लल्लविफल - वाया, असक्कतमसक्कया, अगंधा, अचेयणा, दुभगा, अकंता, काकस्सरा, ही भिन्नघोसा, विहिंसा, जडबहिरंधया ' ( मूया ) य, मम्मा, अतविकयकरणा, णीया, णीयजणनिसेविणो, लोगगरहणिज्जा, भिच्चा, असरिसजणस्स पेस्सा, दुम्मेहा, लोकवेदअज्झष्प समयसुतिवज्जिया, नरा धम्मबुद्धिवियला ।
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अलिएणय तेरणं पडज्झमाणा असंतएण य अवमाणणपिट्ठिमंसा हिक्खेव - पिसुण - भेयण - गुरुबंधवसयण मित्तवक्खारणा'दिया' अब्भक्खाणाई बहुविहाइ पावेंति अमणोरमाइ हिययमणदूमकाई, जावज्जीवं दुरुद्ध राई, अणि खर- फरुसवयण-तज्जणनिब्भच्छण-दीणवदणविमणा, कुभोयणा, कुवाससा, कुवसहीसु किस्सिंता, नेव सुहं, नेव निव्वुई उवलभंति अच्चंत विपुलदुक्खसयसंपत्ता (संपलित्ता ) |
एसो सो अलियवयणस्स फलविवाओ इहलोइओ, परलोइओ, अप्पसुहो, बहुदुक्खो, महन्भओ, बहुरयप्पगाढो, दारुणो,