SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र २१८ प्रोत्साहन देने वाली कथाओं या बातों में ही खुश रहने वाले ये असत्यवादी जन मन, वचन, काया के द्वारा अनेक प्रकार से असत्याचरण करने में संतुष्ट रहते हैं । असत्य के कटुफल असत्य बोलने वालों और असत्य बोलने के विविध कारणों का स्पष्ट उल्लेख - करने के बाद शास्त्रकार अब असत्य के कटुफलों का निरूपण करते हैं मूलपाठ तस् य अलियस फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्खसंकडं नरयतिरियजोणि, तेण य अलिएण समणुबद्धा आइद्धा पुणन्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गतिवसहिमुवगया, ते य दिसंति ह दुग्गया, दुरंता, पर'वस्सा अत्थभोगपरिवज्जिया, असुहिता, फुडियच्छविबीभच्छविवन्ना, खरफरुसविरत्तज्झामज्झसिरा, निच्छाया, लल्लविफल - वाया, असक्कतमसक्कया, अगंधा, अचेयणा, दुभगा, अकंता, काकस्सरा, ही भिन्नघोसा, विहिंसा, जडबहिरंधया ' ( मूया ) य, मम्मा, अतविकयकरणा, णीया, णीयजणनिसेविणो, लोगगरहणिज्जा, भिच्चा, असरिसजणस्स पेस्सा, दुम्मेहा, लोकवेदअज्झष्प समयसुतिवज्जिया, नरा धम्मबुद्धिवियला । 1 अलिएणय तेरणं पडज्झमाणा असंतएण य अवमाणणपिट्ठिमंसा हिक्खेव - पिसुण - भेयण - गुरुबंधवसयण मित्तवक्खारणा'दिया' अब्भक्खाणाई बहुविहाइ पावेंति अमणोरमाइ हिययमणदूमकाई, जावज्जीवं दुरुद्ध राई, अणि खर- फरुसवयण-तज्जणनिब्भच्छण-दीणवदणविमणा, कुभोयणा, कुवाससा, कुवसहीसु किस्सिंता, नेव सुहं, नेव निव्वुई उवलभंति अच्चंत विपुलदुक्खसयसंपत्ता (संपलित्ता ) | एसो सो अलियवयणस्स फलविवाओ इहलोइओ, परलोइओ, अप्पसुहो, बहुदुक्खो, महन्भओ, बहुरयप्पगाढो, दारुणो,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy