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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद - आश्रव
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भर्णेति । " कुछ लोग शासनकर्ता के विरुद्ध उसे बदनाम करने के लिए झूठा दोष लगाते हैं ।"
कई लोगों की रग-रग में ईर्ष्या, तेजोद्वेष या डाह भरी होती है । दूसरे की कीर्ति, बढ़ती हुई प्रतिष्ठा, गुणवृद्धि, तरक्की, धार्मिकता या तेजस्विता उन्हें फूटी आँखों नहीं सुहाती और वे उसे सह न सकने के कारण उनके गुणों को ढांकने, उन्हें बदनाम करने या लोगों की दृष्टि में गिराने का निन्द्य प्रयत्न करते हैं; उनके लिए विपरीत वचन बोलते हैं, यद्वा तद्वा बकते हैं । इस प्रकार असत्यभाषण करके वे दीर्घकाल तक अपनी आत्मा को उन सद्गुणों से पृथक् रखने वाले दुष्कर्मों का गाढ़ बन्ध कर लेते हैं ।
'अलियं चोरोत्ति'' से लेकर ' परदोसुप्पायणपसत्ता वेढेंति' तक का पाठ बहुत ही स्पष्ट है । मूलार्थ में हम इसका स्पष्ट अर्थ कर चुके हैं ।
विविध कारणों से झूठ बोलने वाले - शास्त्रकार ने विविध कारणों से झूठ बोलने वालों का स्पष्ट उल्लेख किया है – “मुहरी असमिक्खियप्पलावा गरुयं भणति ।” मनुष्य धन के लिए, कन्या के लिए, भूमि के लिए, गाय-बैल आदि के लिए बहुत भारी झूठ बोलता है । 'अत्थालियं' का 'स्वार्थ के लिए असत्य' अर्थ भी हो सकता है । यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य धन, सत्ता, स्वार्थ आदि की प्राप्ति के नशे में सत्य-असत्य का कोई विचार ही नहीं करता । ये बड़े-बड़े कारण ही प्राय: असत्य भाषण के हैं; जिनका शास्त्रकार ने स्पष्ट उल्लेख किया है ।
हिंसाजनक पेशे वाले असत्यवादी - शास्त्रकार ने असत्य के भयंकर स्वरूप का वर्णन करते हुए विवध प्रकार से हिंसाकारी वचनों या उपदेशों का प्रयोग करके प्राणियों के लिए अहितरूप असत्य का सेवन करने वाले विविध व्यक्तियों का उल्लेख भी किया है । जो एक प्रकार से हिंसात्मक पेशा करने वालों को वचन द्वारा प्रोत्साहन देते हैं। या उपदेश व प्रेरणा देते हैं, वे शिकारियों, पारधियों, बहेलियों, मच्छीमारों, सपेरों, लुब्धकों, पासियों, पक्षिपालकों, ग्वालों, चोरों, जासूसों, लुटेरों, उचक्कों, कोतवालों, खनिकों, मालियों एवं वनचरों, आदि को विविध प्रकार के हिंसाजनक उपदेश, निर्देश, तालीम या प्रेरणा देकर प्राणियों के अहितरूप असत्य का सेवन करते हैं । कई लोग बिना ही पुछे रातदिन दूसरों के कार्यों की चिन्ता में डूब कर ऐसे अहितकर सावद्य कार्यों की प्रेरणा करते रहते हैं । शास्त्रकार ने ऐसे लोगों की प्रवृत्तियों का स्पष्ट उल्लेख किया है ।
असत्यवादियों की मनोवृत्ति — आगे चल कर ऐसे असत्यवादियों की मनोवृत्ति का विश्लेषण करते हैं कि हिताहित व कर्तव्य - अकर्तव्य के विवेक में अकुशल, अनार्य, मिथ्याशास्त्रों के वचन पर चलने वाले, असत्यकार्यों में ही रत रहने वाले, असत्य को