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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
कः कण्टकानां प्रकरोति तैक्ष्ण्यं, विचित्रभावं मृगपक्षिणां च । स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृत्तं न कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः ॥ अर्थात् — सूर्य गर्म है, चन्द्रमा शीतल है, पहाड़ स्थिर है, हवा चंचल है, स्त्री के मुंह पर मूंछें नहीं आतीं हथेली पर स्तन का उद्भव नहीं होता । किसी में भव्य - भाव और किसी में अभव्य भाव, सद्गुण-दुर्गुण आदि सब भाव स्वभाव से ही होते हैं। कांटों में तीखापन कौन करता है ? मृग और पक्षियों के अन्दर विभिन्न भाव और रंगरूप आदि की विचित्रता सब स्वभाव से ही होती है । सभी कार्यों में स्वभाव की प्रधानता है । किसी की इच्छा इसमें नहीं चल सकती, पुरुषार्थ का तो वहाँ चलता ही क्या है ?
तीसरे दार्शनिक नियति से ही जगत् के सभी कार्यों का होना, या बिगड़ना मानते हैं । उनका कहना है कि जो कुछ होना होता है, वह हो कर ही रहता है, जो नहीं होना होता है, वह लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं होता । उसका वैसा होने का स्वभाव होने पर भी, काल पक जाने पर भी, मनुष्य की इच्छा होने पर भी, वह नहीं होता, जो नहीं होना है । अतः नियति यानी भवितव्यता या होनहार ही बलवान है । कहा भी है
" प्राप्तव्यमर्थ लभते मनुष्यः, किं कारणं ? दैवमलंघनीयम् । तस्मान्न शोचामि न विस्मयामि यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् ॥ १॥ द्वपादन्यस्मादपि
मध्यादपि
जलनिधेदशोऽप्यन्तात् । विधिरभिमतमभिमुखीभूतम् ॥ २ ॥ बुद्धिर्व्यवसायश्च तादृशः । यादृशी
भवितव्यता ॥ ३॥
भवति च भाव्यं विनाऽपि यत्नेन ।
आनीय झटिति
सा
घटयति सम्पद्यते
ज्ञेया,
सहायास्तादृशा नहि भवति यन्न भाव्यं, करतलगतमपि नश्यति, यस्य तु भवितव्यता नास्ति ॥४॥ अर्थात् —'क्या कारण है कि जो पदार्थ मिलने वाला है, उसे मनुष्य अवश्य ही प्राप्त करता है ; क्योंकि दैव - भाग्य दुर्निवार है । इसलिए मैं किसी बात को पाने की चिन्ता नहीं करता और न किसी चीज के चले जाने पर आश्चर्य ही करता हूं । जो पदार्थ हमारा है, वह दूसरे का हो नहीं सकता । यानी वह मुझे अवश्य ही मिलेगा ।'
सा
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जब विधि – दैव या भाग्य अभीष्ट व अनुकूल होता है तो दूसरे द्वीप से भी, अतल समुद्र के बीच से भी और दिशाओं के अन्तिम छोर से भी विधि हमारी इष्ट वस्तु को झटपट ला कर जुटा देती है। यानी हमें वह वस्तु अवश्य ही कहीं न कहीं से प्राप्त हो जाती है, क्योंकि जैसी भवितव्यता ( होनहार ) होती है, वैसी ही बुद्धि होने लग जाती है, वैसा ही पुरुषार्थ होने लगता है और वैसे ही सहायक मिलते जाते हैं । जो नहीं होने वाला है, वह कभी नहीं होता है और जो होनहार है, वह बिना